मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • सब अपने अपने आचरण परंपरा को दृढ़ता का रूप देने गए। इन सभी रूढ़ियो को अपने-अपने समुदाय सीमा में स्वीकार किया गया। इनके आदतों की विशेषताएँ, हरेक मोड़ मुद्दे में टकराव एवं प्रश्न चिन्ह को बनाता गया। यह सब धार्मिक, राजनैतिक स्थिति की सामान्य समीक्षा रही।
  • धन के आधार पर गरीबी-अमीरी के असमानता अथवा अधिक विपन्नता को दूर करने के आधार पर आर्थिक राजनीति को प्रयोग किया गया और इसे प्रभावशील बनाने की विभिन्न देशकाल में कोशिशें की गई, अर्थात् आर्थिक असमानता और सांस्कृतिक विषमताओं को दूर करने के लिए अथक प्रयत्न किया गया। उल्लेखनीय बात यह है कि ऐसे भरपूर प्रयत्नों के उपरांत भी धार्मिक राजनीति पर्यन्त झेले गए सभी विभिन्न समुदाय चेतना यथावत् बना हुआ देखा जाता है, और इसी के साथ आर्थिक विषमता के अनगिनत प्रश्न उलझते ही गए। इस प्रकार आर्थिक राजनीति धन के आधार पर ही मानव को दास बनाने के कार्य में व्यस्त हो गयी।

पूर्ववर्ती विधि

समर और दण्डनीति केन्द्रित शासन सर्वोपरि विधि माना गया और लोक रुचि का प्रोत्साहन कल्पना के आधार पर अनेक कार्यक्रम, विभिन्न राज राष्ट्रों में प्रस्तुत किए गये जिनकी कार्य शैलियों को साम, दाम, भेद, दण्ड के रूप में देखा गया। इन्हीं के सहारे पद, भोग लिप्सा एवं संग्रह-सुविधा सहित द्रोह-विद्रोह-शोषण-युद्ध के रूप में एक दूसरे के समक्ष परस्पर समुदायों ने अपने को प्रस्तुत किया। यह भी परिलक्षित हुआ कि प्रत्येक समुदाय अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किसी भी अनीति को नीति की पोषाक पहना कर उपयोग करते आया। प्रत्येक शासन उन उन समुदाय की जनता को सुख-शांति और यथास्थिति को संरक्षण करने का आश्वासन देते हुए, विश्वास दिलाते हुए असफल हो चुके या होने वाले हैं। अर्थात् संपूर्ण राज्य, राष्ट्र अपनी सीमाओं में अथवा भूखण्ड में निवास करने वाले मानव समुदाय में अंतर्विरोध को तथा पड़ोसी देशों के साथ अंतर्विरोध को दूर करने में समर्थ नहीं रहे, आश्वासन अवश्य ही देते रहे।