मानवीय संविधान
by A Nagraj
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- मूलत: प्रबुद्धता का लोकव्यापीकरण ही मानवत्व है।
- सर्व मानव का मानवेत्तर प्रकृति यथा पदार्थ, प्राण, जीव अवस्थाओं में स्थित वस्तुओं के साथ नियम, नियंत्रण, संतुलन को बनाये रखना मानवत्व है।
- आवर्तनशीलता एवं ऋतु संतुलन नियम को बनाये रखना मानवत्व है।
- अनुपातीय रूप में खनिज वनस्पतियों का सुरक्षित किया जाना मानवत्व है। दश सोपानीय परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था, यथा विश्व परिवार सभा से परिवार सभा का दायित्व व कर्तव्य है। परिवार सभा से यह विश्व राज्य परिवार सभा का कर्त्तव्य और दायित्व है। शिक्षा में इसका सार्थक अध्ययन आवश्यक है। यह मानवत्व है।
- मानवीय शिक्षा-संस्कार का दायित्व-कर्त्तव्य परिवार सभा से विश्व परिवार सभा में दायित्व-कर्त्तव्य रूप में निहित रहता है। इसका निर्वाह योग्य होना मानवीयता है।
- शिक्षा-संस्कार सर्वतोमुखी समाधानकारी ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्न होने का प्रमाण मानवत्व है। यह परंपरा का कर्त्तव्य हर मानव सन्तान का अधिकार है। यह मानवत्व है।
- जागृत शिक्षा परंपरा अखण्ड सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में सम्पन्न होना मानवत्व है।
- अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन ही मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद है। इस पर शिक्षा संस्कार में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान बोध, जीवन ज्ञान बोध, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान बोध परंपरा होना मानवत्व है।
- शिक्षा में, से, के लिए व्यापक वस्तु रूपी साम्य ऊर्जा में सम्पूर्ण एक-एक वस्तु सम्पृक्त ऊर्जा सम्पन्न नित्य वर्तमान क्रियाशील विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति के रूप में होने की परम सत्य सहज अवधारणा सहित अनुभव सम्पन्न रहना मानवत्व है।
सहअस्तित्ववादी शिक्षा संस्कार पूर्वक प्रत्येक एक विद्यार्थी अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था है। समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने का अध्ययन व प्रमाण मानवत्व है।