मानवीय संविधान
by A Nagraj
Page 240
- जागृत मानव सन्तानों का सहअस्तित्व सहज वैभव को अध्ययनपूर्वक जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने योग्य होने में बोध पूर्ण होना मानवत्व है।
- मानवीय शिक्षा-संस्कार में सहअस्तित्व नित्य प्रमाण होने के लिए बोध सम्पन्न होना, करना, कराना, करने के लिए सहमत होना मानवत्व है।
- शिक्षा में मानवत्व का बोध होना सर्व मानव सन्तान में, से, के लिए मौलिक अधिकार है। यह मानवत्व है।
- मानवत्व का प्रमाण मानवीयता पूर्ण आचरण ही है।
- मानवत्व (मानवीयता पूर्ण आचरण) जागृत मानव सहज परिभाषा व्यवस्था और लक्ष्य को सार्थक रुप प्रदान करना, करने के लिए सहमत होना हर मानव में, से, के लिए अधिकार है।
- परिभाषा संगत होने का तात्पर्य मन:स्वस्थता सहज मानसिकता सहित मनाकार को साकार कर प्रयोजन सहज परिवार आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य में प्रमाणित रहने से है। यह मानवत्व है।
- व्यवस्था संगत होने का तात्पर्य परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी सहित दश सोपानीय व्यवस्था में भागीदारी कृत, कारित, अनुमोदित प्रमाण से है। यह मानवत्व है।
- लक्ष्य संगत होने का तात्पर्य समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज आचरण पूर्वक प्रमाणित होने से है।
- मानव ही बहुआयामी प्रवर्तनशील व प्रमाण होने के कारण ही अनुबंध पूर्णता के अर्थ में निबन्ध व प्रबन्ध कार्य सार्थक है। यह मानवत्व है।
- संबंधो को जानना, मानना,पहचानना, निर्वाह करना मानवत्व है।
- ज्ञान, विवेक, विज्ञान पूर्ण संबंधों में, से, के लिए जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने के रूप में संकल्पित होना ही अनुबंध है। यह मानवत्व है।
संबंध नित्य वर्तमान, वर्तमान अस्तित्व, अस्तित्व सहअस्तित्व, सहअस्तित्व वैभव, वैभव यथा स्थिति गति, मानव परंपरा में स्थिति गति समझदारी,