मानवीय संविधान

by A Nagraj

Back to Books
Page 224
  • सम्पूर्ण मानव का सार्वभौम लक्ष्य सदा सदा के लिये समान है। यही परंपरा का आधार है।
  • सर्व मानव शुभ अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी सम्पन्न होना ही वैभव है।
  • सुदरू विगत से मानव परंपरा की गतिविधि, घटनाओं के आंकलन से पता चलता है कि अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था को पहचाना नहीं गया इसलिये विकल्प रुप में सहअस्तित्ववादी प्रस्तुति है।
  • अखण्डता सार्वभौमता ही वर्तमान में प्रमाण है।
  • मानवीय संस्कृति-सभ्यता-विधि-व्यवस्था ही सार्वभौमता व अखण्डता सहज सूत्र व्याख्या है।
  • सर्वशुभ कार्य व्यवहार ही अखण्डता सार्वभौमता है। यही मंगल मैत्री सूत्र व्याख्या है।
  • समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण ही सर्वशुभ परंपरा है।
  • जागृतिपूर्वक अनेक जाति, मत, सम्प्रदाय व धर्म वाले भी अखण्ड समाज के अर्थ में प्रमाणित होना समीचीन है।
  • जागृतिपूर्वक जीने वाले हर नर-नारी अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या को प्रमाणित करते हैं। यही सर्वशुभ है।
  • बहुआयामी प्रवृत्ति ही विविधता का आधार है। जागृतिपूर्वक सभी आयामों में समाधान प्रमाणित होता है यही एकता का आधार है।
  • सभी अवस्थाओं में प्रत्येक एक व्यापक वस्तु में संपृक्ततावश पहचान (परस्परता) निर्वाह ही स्वयंस्फूर्त व्यवस्था है।
  • सर्वशुभ ज्ञान-विज्ञान, विवेकपूर्ण योजना कार्य-व्यवहारपूर्वक पाई जाने वाली सर्वतोमुखी समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण है। जागृति मानव परंपरा सहज वैभव व्यवस्था है।

स्वराज्य, स्वतंत्रता, स्वत्व