मानवीय संविधान

by A Nagraj

Back to Books
Page 223
  • मानव में, से, के लिए समझदारी समान

ईमानदारी समान

जिम्मेदारी समान

भागीदारी से फल परिणाम समान है।

  • जागृत मानव (प्रत्येक नर-नारी) में, से, के लिए अनुभव प्रमाण, समाधान, सत्य, न्याय समान है।
  • जागृत मानव में, से, के लिए नियम, नियंत्रण, संतुलन समान है।
  • जागृत मानव परंपरा में जीवन सहज अक्षय बल, अक्षय शक्ति समझ समान है।
  • जागृत मानव परंपरा में जीवन ज्ञान समान है।
  • जागृत मानव परंपरा में प्रत्येक नर-नारी में, से, के लिए मौलिकता सहज स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार समान है।
  • जागृत मानव परंपरा में मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहज समानता है।
  • सर्व मानव में, से, के लिए जागृत जीवन समानता व्याख्या सूत्र ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था का आधार है।
  • जागृत मानव परिभाषा के अर्थ में समान होता है।
  • जागृत मानव परिभाषा, व्याख्यानुरूप आचरण में समान और आचरण का प्रयोजन समान है।
  • मानवत्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी ही जागृति का प्रमाण है। यह प्रत्येक नर-नारी में, से, के लिए समान है।
  • अखण्ड सामाजिकता की स्वीकृति प्रत्येक नर-नारी में, से, के लिये होना आवश्यक है।
  • व्यवस्था दश सोपनीय विधि से सार्वभौम होना नित्य समीचीन है। इसमें प्रत्येक नर-नारी भागीदारी करना समान है।

सम्पूर्ण मानव जाति एक होने के कारण मानव कुल एक फलस्वरूप अखण्ड समाज और अखण्ड सामाजिकता सहज समझदारी का लोक व्यापीकरण आवश्यक है।