मानवीय संविधान
by A Nagraj
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- स्वत्व के अनुरूप किया गया लक्ष्य व दिशा निर्धारण ही स्वतंत्रता है।
- ज्ञान, विवेक, विज्ञान संपन्नता ही स्वत्व अविभाज्य सम्पदा है जो वैभव का आधार है।
- स्वतंत्रता स्वयंस्फूर्त विधि से लक्ष्य व दिशा निर्धारण सहित प्रमाण क्रिया है जो आगे-आगे स्पष्ट योजना व प्रमाण कार्ययोजना गति का उदय सहज प्रवृत्ति है।
- स्वायत्तता स्वयंस्फूर्त विधि से परिवार व्यवस्था ग्राम मोहल्ला स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी के रूप में स्पष्ट होती है। यही जागृति सहज प्रमाण है।
- स्वत्व ही अधिकार या अधिकार ही स्वत्व, स्वतंत्रता ही विधि या विधि ही स्वतंत्रता, व्यवस्था ही मूल्य-चरित्र-नैतिकता या मूल्य-चरित्र-नैतिकता ही व्यवस्था है। इस प्रकार सर्वशुभ सर्वमानव में, से, के लिए समीचीन है।
ब्रह्म वर्चस्व
- अखण्डता सार्वभौमता सहज रूप में मानवत्व प्रमाणित होना ही प्रज्ञा है। यही सत्यानुभूत ब्रह्मवर्चस्व है।
- प्रज्ञा सहज प्रमाण ही मेधाविता, तेजस्विता, ओजस्विता और ब्रह्मवर्चस्वता है। अनुभव सहज प्रमाण, चिंतन साक्षात्कार सहज प्रमाण, ज्ञान-विवेक-विज्ञान संपन्नता सहित किया गया कार्य-व्यवहार फल-परिणाम ज्ञान सम्मत होने में दृढ़ता विश्वास ही प्रज्ञा है। ब्रह्मवर्चस्व है।
- समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज धारक वाहकता ही वर्चस्व स्वयं स्फूर्त विधि है।
- वर्चस्व ही स्वतंत्रता स्वराज्य के रूप में परम ब्रह्म वर्चस्व है।
- मानव में ही वर्चस्वी होने की कामना सदा से रहा है जिसका प्रमाण जीवन जागृति पूर्ण मानसिकता सहज सफल सार्थक होता है।
- सार्वभौमिकता सहज मानसिकता ही मानव में, से, के लिए वर्चस्व है।
व्यक्ति, जागृति पूर्वक ब्रह्मवर्चस्व सहज सर्वशुभ सूत्र व्याख्या है और सार्वभौमिकता ही मानव वर्चस्व सहज प्रमाण है।