मानवीय संविधान
by A Nagraj
Page 206
- सहअस्तित्व का अर्थ व्यापक वस्तु में ही सम्पूर्ण एक-एक वस्तु संपृक्त नित्य वर्तमान और अविभाज्य है।
- हर मानव भी एक-एक रूप में गण्य है। मानवत्व सहित मानव ही अपने में वैभव है।
- मानव ‘त्व’ सहित व्यवस्था होना, समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज स्पष्टता है और पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था में नियम, नियंत्रण, संतुलन पूर्वक व्यवस्था स्पष्ट है।
- व्यवस्था नियति सहज नित्य वैभव है। यह हर मानव में, से, के लिए समझ में आना आवश्यक है।
- नियति सहजता का तात्पर्य नियम, नियंत्रण, संतुलन के अर्थ में मानवेत्तर प्रकृति की व्यवस्था और न्याय, धर्म (समाधान), सत्य सहज ही मानव ध्रुवस्थ है। ध्रुवस्थ का तात्पर्य निश्चित स्थिति-गति से है।
- सहअस्तित्व में, से, के लिए नियति निश्चित वर्तमान है।
- मानवेत्तर प्रकृति नियम, नियंत्रण, संतुलन, पूरकता-उपयोगिता विधि से ‘त्व’ सहित व्यवस्था है।
- संबंधों की पहचान के आधार पर हर नर-नारी नियंत्रित होना पाया जाता है।
- समझदारीपूर्वक ही नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, समाधान (धर्म), सत्य जागृत मानव परंपरा में, से, के लिए प्रमाण है।
- सहअस्तित्व में प्रत्येक एक सभी ओर प्रकाशमान है। व्यापक वस्तु सभी एक-एक में प्राप्त है क्योंकि सभी अवस्था में सभी इकाईयाँ व्यापक सत्ता में सम्पृक्त हैं।
- व्यापक वस्तु स्थितिपूर्ण है, क्योंकि जहाँ इकाईयाँ है और जहाँ इकाईयाँ नहीं है ऐसी उभय स्थिति में व्यापक वस्तु है। व्यापक वस्तु असीमित है और सभी एक-एक वस्तु का सीमित होना रहना स्पष्ट है।
- व्यापक में जड़-चैतन्य प्रकृति सहज सम्पृक्तता ही प्रत्येक एक में ऊर्जा संपन्नता और क्रियाशीलता है। जीवन जागृति क्रिया सहज पहचान सहित आचरण है।
परस्पर पहचान संबंध व मूल्य निर्वाह ही जागृति सहज प्रमाण है।