मानवीय संविधान
by A Nagraj
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- सहअस्तित्व में, से, के लिए नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म व सत्य नित्य वर्तमान प्रकाशन है। यही नियति है।
- अस्तित्व ही सहअस्तित्व रूप में नित्य वर्तमान है।
- सहअस्तित्व अनादि और अनवरत (निरंतर) है।
- सहअस्तित्व अनादि, शाश्वत, अनन्त और व्यापक है।
- सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति ही चार अवस्थाओं व पदों में गण्य है।
- सहअस्तित्व में भौतिक, रासायनिक व जीवन क्रियाकलाप ही विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति में, से, के लिए प्रमाण है। जीव शरीर और मानव शरीर भी प्राण कोशाओं से रचित रहता है। इसकी विरचना भी होती है। इसमें से रचना को जन्म, विरचना को मृत्यु कहा जाता है।
- पदार्थावस्था में संगठन-विघटन एवं प्राणावस्था में रचना-विरचना है। जीवावस्था क्रूर-अक्रूर एवं ज्ञानावस्था भ्रम-निर्भ्रम है।
- रचना-विरचना, विरचना-रचना परिणाम का द्योतक होते हुए मूल पदार्थ का अस्तित्व नित्य वर्तमान है।
- अस्तित्व न ही घटता है न ही बढ़ता है, स्थिर है।
- अस्तित्व सहज नित्य वर्तमान ही है। यही स्थिरता, दृढ़ता, निश्चयता, निरंतरता, नियति सहज नित्य है।
- पूर्ण, पूर्णता व सम्पूर्णता ही सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व सहज नित्य वैभव है।
- अस्तित्व सहज वस्तु में, से, के लिए व्यापक वस्तु स्थिति पूर्ण एवं स्थिति पूर्ण सत्ता में सम्पृक्त प्रत्येक एक अपने ही वातावरण सहित सम्पूर्ण होना पाया जाता है।
- सम्पूर्णता ही प्रत्येक एक भौतिक-रासायनिक इकाईयो में, से, के लिए यथास्थिति है।
- प्रत्येक एक अपने यथास्थिति पूर्वक ही “त्व” सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी करते हैं।
सहअस्तित्व ही नित्य शाश्वत वर्तमान है।