मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • संतोष का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण बोध और अभिव्यक्ति होने का संकल्प मन:स्वस्थता सहज प्रमाण है।
  • शांति का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण बोध, संकल्प का साक्षात्कार-चित्रण अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रमाण है।
  • सुख का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण बोध, संकल्प, साक्षात्कार, चित्रण व तुलन, विश्लेषण अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा और प्रकाशन है।
  • आस्वादन का प्रयोजन अनुभव सहज प्रमाण, बोध, संकल्प, साक्षात्कार, तुलन, विश्लेषणपूर्वक निश्चित मूल्यों में तादात्म्यता, तदाकार, तद्रूरूप विधि से मूल्यों का आस्वादनपूर्वक संबंधों का चयन, निर्वाह रूप में प्रमाण अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन है।
  • संवेदनाओं का प्रयोजन संज्ञानीयता में से नियंत्रित रहना है।
  • संज्ञानीयता का प्रयोजन जागृति सहज प्रमाण है।
  • जागृति का प्रयोजन मानवत्व सहित सहअस्तित्व सहज प्रमाण परंपरा में ही भौतिक-रासायनिक वस्तुओं का सदुपयोग, प्रयोजनशील होना और जीवन क्रिया तथा जागृति को प्रमाणित करना और मूल्यांकन करना है।
  • भौतिक-रासायनिक वस्तु का उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन का प्रमाण शरीर पोषण-संरक्षण, समाज गति में नियोजन है।
  • सदुपयोग का प्रयोजन व्यवस्था में पूरकता सहज प्रमाण है।
  • प्रमाणशीलता का साक्ष्य आवर्तनशीलता व समाधान समृद्धिकरण में नियोजन है।
  • आवर्तनशीलता का प्रयोजन, बार-बार घटित होना है।

यथा:

  • संगठन-विघटन, विघटन-संगठन, मृदा-पाषाण मणि-धातु की ओर, मणि-धातु मृदा-पाषाण की ओर

रचना-विरचना, विरचना-रचना, बीज वृक्ष की ओर, वृक्ष बीज की ओर