मानवीय संविधान

by A Nagraj

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इक्कीसवीं सदी तक भौतिकवादी विज्ञान ने ‘मानव’ को भौतिक-रासायनिक वस्तु में निरूपित कर भ्रमित मानव को और भ्रमित किया है जिसके कारण मानव प्रदूषण फैलाया और धरती रोग ग्रस्त हो गई। सभी समुदाय परस्परता में द्रोह-विद्रोह, शोषण और युद्ध मानसिकता व प्रक्रिया से पक्के हो गये हैं जो मानव कुल के लिए अप्रत्याशित घटना है। यह स्पष्ट है। इसके उभरने के लिए जागृत मानव सहज आचार संहिता मध्यस्थ दर्शन सहस्तित्ववाद, शास्त्र हर मानव के लिए अध्ययन पूर्वक विचार निर्णय सहित प्रमाणित होते रहने, जीने देने, जीने में, से, के लिए प्रशस्त प्रस्ताव है।

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