मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • हर नर-नारी का मानवीय शिक्षा संस्कार सम्पन्न रहना ग्राम, मोहल्ला, देश, धरती में मानव का वैभव है।
  • जागृत मानव परंपरा में सम्पूर्ण मानव का अपने में सामाजिक अखण्डता और सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या में प्रमाण होना सहज है।
  • जागृत मानव परंपरा में ही समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाण सहित नियम, नियंत्रण, संतुलन समेत सर्व सुख-शान्ति सहज विधि से जीना होता है। यही स्वराज्य है।
  • कम से कम सोलह-अठ्ठारह अधिक से अधिक बीस वर्ष की अवस्था में श्रम साध्य कार्यों को करने का दायित्व-कर्त्तव्य होना आवश्यक है।
  • प्राकृतिक ऐश्वर्य पर उपयोगिता मूल्य के अर्थ में श्रम नियोजन फलस्वरुप समृद्धि सार्थक होना पाया जाता है।
  • श्रम कार्य हर नर-नारी में, से, के लिये स्वस्थता, समृद्धि, सेवा के लिए आवश्यक है।
  • खेल,व्यायाम एवं श्रम स्वस्थ रहने का उपाय है। आवश्यकता व समय के अनुसार श्रम नियोजन हर ग्राम सभा, परिवार समूह सभा के निश्चित सामूहिक कार्य और परिवार से स्वीकृत होना भी रहेगा।
  • श्रम नियोजन हर मानव में, से, के लिये आवश्यक है।
  • श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता व कला मूल्य ही प्रमाणित होता है। स्वास्थ्य संतुलन के लिए भी श्रम, समय नियोजन होता है।
  • सम्पूर्ण उपयोगितायें सामान्य व महत्वाकाँक्षा संबंधी उपलब्धि होगी।
  • हर नर-नारी युवा काल से प्रौढ़ावस्था के फलन तक श्रम नियोजन योग्य होते हैं। श्रम करने की प्रवृत्ति जागृति पूर्वक सफल विधिवत् होता है।
  • शरीर की सभी अवस्थायें सदा दृष्टव्य है।
  • मानवीय शिक्षा-संस्कार पूर्वक ही हर नर-नारी में, से, के लिए मानवत्व सहज मानसिकता प्रमाणित होना पाया जाता है।

हर मानव का समझने के लिए ध्यान देना आवश्यक है और समझा हुआ को प्रमाणित करने के लिए ध्यान देना बना रहता है।