मानवीय संविधान

by A Nagraj

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हर परिवार मानवीयता पूर्ण आचरण, संबंध-संबोधन, मूल्य, नैतिकता, चरित्र सहज अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन सहित आहार-आवास-अलंकार संबंधी वस्तुओं से सम्पन्न रहना अधिकार स्वत्व स्वतंत्रता

परिवार = परस्पर सुख-शान्ति सहज प्रमाण में, से, के लिये समाधान, समृद्धि पूर्वक प्रमाण परंपरा प्रस्तुत करना

  • जागृति सुलभता सहज घोषणा
  • हर जागृत मानव परिवार में शरीर सहज आयु अनुसार श्रम व कार्य करना, यह स्वयंस्फूर्त होना, स्वत्व-स्वतंत्रता-अधिकार के आधार पर है।
  • शिशु काल तीन से पाँच वर्ष तक - 3 से 5 वर्ष तक

कौमार्य अवस्था पाँच से बारह वर्ष तक - 5 से 12 वर्ष तक

युवावस्था बारह से बीस वर्ष तक - 12 से 20 वर्ष तक

प्रौढ़ावस्था - 20 से 30 वर्ष तक

परिपक्वावस्था - 30 से 70 वर्ष

परिपक्वावस्था सत्तर वर्ष के अन्तर वृद्धावस्था - 70 वर्ष के अनन्तर

में निहित ज्ञान विवेक विज्ञान में भागीदारी में

प्रखर होना, शरीर में क्रमिक शिथिलता

परिपक्वावस्था (यही पीढ़ी से पीढ़ी उन्नत होने का - परिपक्वता की निरंतरता ही परंपरा

प्रेरणा स्रोत जागृत परंपरा के अर्थ में आयु

आवश्यकता कर्त्तव्य घोषणा)

  • शिशु काल में लालन-पालन, पोषण-संरक्षण

लालन :- शिशु में खुशियाली मुस्कान की अपेक्षा में किये गये पोषण-संरक्षण, भाषा-अभाषा, भाव-भंगिमा, मुद्रा, अंगहार रूपी उपक्रम प्रकटन।

पालन :- शरीर पुष्टि, मनःस्वस्थता स्वस्थता के लिए किया गया उपक्रम।

पोषण :- शरीर भाषा संबोधनों को प्रमाणित करना।