मानवीय संविधान
by A Nagraj
Page 165
- हर मानव का ज्ञानावस्था में होना ही समझदारी में, से, के लिए प्रवृत्ति व अध्ययन व समझ प्रमाण है। यही परंपरा है।
- सर्वमानव सहअस्तित्व में ही समझदार होना नित्य समीचीन है।
- सर्वमानव अपने वैभव को समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज विधि से प्रमाण पहचान होना ही मानवीय परंपरा इतिहास वर्तमान है।
- मानव संस्कृति प्रमाण घोषणा
संस्कृति
तात्विकता :- पूर्णता (क्रियापूर्णता, आचरण पूर्णता) के अर्थ में स्वीकृत समझ सहित प्रकाशन।
बौद्धिकता :- मूल्यों के अर्थ में प्रकाशन।
व्यवहारिकता :- मानवीयता के अर्थ में कला साहित्य का प्रकाशन, जागृति व सतर्कता सहित वर्तमान- क्रियापूर्णता समाधान के अर्थ में, आचरण पूर्णता जागृतिपूर्णता के अर्थ में, सजगता अनुभव संपन्न प्रमाण के रूप में स्पष्ट है।
- जीना ही दर्शन प्रकाशन कला है।
- श्रेष्ठ, श्रेष्ठतर, श्रेष्ठतम विधि से जीने की कला का प्रकाशन ही संस्कृति है। यह संज्ञानीयता में नियंत्रित संवेदना पूर्वक मानवीय संस्कृति है। समाधान सहज है।
- संबंध उत्सव घोषणा
प्रत्येक परिवार पूरा ग्राम परिवार के साथ तालमेल बनाये रखने का अधिकार।
हर परिवार उत्सव संबंध
हर तरह कला संबंध
संस्कृति - संबंध
शिक्षा लोक शिक्षा - संबंध
विनिमय - संबंध
उत्पादन - संबंध
वस्तुओं का उपयोग - संबंध