मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • हर धरती पर जागृत परंपरा में मानव ही स्वयं संतुलित रहने का दृष्टा है। यह समझ समाधान है।
  • जागृत परंपरा ही मानव को पीढ़ी से पीढ़ी दृष्टा पद में प्रतिष्ठित करता है। यह समझ समाधान है।

(1) पूरकता (2) उपयोगिता (3) शून्याकर्षण (4) सहअस्तित्व (5) विकास क्रम

(6) विकास (7) जागृति क्रम (8) जागृति और निरंतरता सहज समझ समाधान है।

  • समाधान
  • सहअस्तित्व में जीने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • ऋतु संतुलन को धरती में बनाये रखने का सोच-विचार-निर्णय व कार्यक्रम समाधान है।
  • नियम, नियंत्रण, संतुलन पूर्वक जीने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • न्यायपूर्वक जीने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • अखण्ड समाज में भागीदारी का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • अभयता पूर्वक समृद्धि सहित जीने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • पूरकता, उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनीयता सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • जीवन मूल्य को प्रमाणित करने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • मानव मूल्यों को प्रमाणित करने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • स्थापित, शिष्ट, उपयोगिता, सुन्दरता मूल्यों को मानव परंपरा में प्रमाणित करने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने के लिए सहअस्तित्व सहज ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्मत सोच-विचार सुनिश्चयन समाधान है।
  • सुख, शांति, संतोष, आनंद सहज सोच-विचार-निर्णय समाधान है।
  • सर्वशुभ सर्व सुलभ होने के लिए सोच-विचार-निर्णय समाधान है।

सर्व सुख शांति सर्व सुलभ होने का सोच-विचार-निर्णय समाधान है।