मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • सहअस्तित्व सहज नित्य रूप में विकास को समझना समाधान, विकास सहज चैतन्य इकाई गठनपूर्ण परमाणु में दृष्टा पद प्रतिष्ठा होने का समझ समाधान है।
  • नित्य वैभव के रूप में जागृति को समझना समाधान है।
  • जीवन व जागृति को परम प्रयोजन के रूप में समझना समाधान है।
  • जीवन ही दृष्टा पद प्रतिष्ठा सम्पन्न होने को अध्ययन अनुभव पूर्वक समझना समाधान है।
  • जीवन ही जागृति पूर्वक मानव परंपरा में प्रमाणित होने को अध्ययन अनुभव पूर्वक समझना समाधान है।
  • समाधान
  • व्यापक सत्ता (साम्य ऊर्जा) में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति सहअस्तित्व सहज अस्तित्व अर्थात् सदा-सदा होना और मानव में, से, के लिए स्वीकार होना ही समाधान है।
  • सहअस्तित्व सहज समझदारी समाधान है।
  • सहअस्तित्व में ही जीवन सहज क्रियाकलाप को समझना समाधान है।
  • सहअस्तित्व में ही जीवनी क्रम, जीवन जागृति क्रम, जागृति और जागृति सहज निरंतरता को मानव परंपरा में समझ होना, मानव परंपरा में ही जागृति प्रमाणित होने की समझ समाधान है।
  • सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति को नित्य वर्तमान सहज सहअस्तित्व रूप में समझना समाधान है।
  • सहअस्तित्व सहज नित्य वर्तमान ही परम सत्य है। यह मानव परंपरा में अर्थात् -
  • मानवीय शिक्षा-संस्कार परंपरा,
  • मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान परंपरा,

मानवीयता पूर्ण दश सोपानीय सार्वभौम व्यवस्था परंपरा का समझ सर्वतोमुखी समाधान है।