मानवीय संविधान

by A Nagraj

Back to Books
Page 117

7.3 (3) उत्पादन - प्रयोजन

उत्पादन में सार्थक उद्देश्य :- शरीर पोषण-संरक्षण, अखण्ड समाज गति में, सार्वभौम व्यवस्था गति में भागीदारी के उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशीलता के अर्थ में

आहार औषधियाँ :- शरीर पोषण-संरक्षण के अर्थ में स्वस्थता को बनाये रखने, निरोगिता के अर्थ में

आवास :- शरीर, आहार, औषधि और पशुओं के संरक्षण के अर्थ में

अलंकार :- आह्लाद (प्रसन्नता) पूर्वक मानव संस्कृति-सभ्यता सहज पहचान के अर्थ में वस्त्र, मणि, धातु, पुष्प-पत्रों को सजाना जिसमें अधिक शीत, उष्ण को शरीरानुकूल बनाये रखने व लज्जा की रक्षा के उद्देश्य समाये रहते हैं।

उक्त तीनों सामान्य आकाँक्षायें हैं।

महत्वाकाँक्षा :- दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन के प्रति मानव ने अपने में अपेक्षा अथवा आवश्यकता के रूप में स्वीकारा है। यह धरती पर मानव को उपलब्ध है। ये तीनों महत्वाकाँक्षायें हैं।

दूरसंचार का प्रयोग व्यवस्था गति को बनाये रखने के प्रयोजन से है।

7.3 (4) जागृति समाधान उत्पादन-विनिमय समृद्धि

मानव ने मनाकार को साकार किया है। मन:स्वस्थता को प्रमाणित करना ही मानव चेतना, समझदारी, जागृति है।

हर जागृत मानव मनाकार को साकार करने मन:स्वस्थता: को परंपरा में प्रमाणित करने समृद्धि का साक्ष्य व व्यवस्था में प्रवृत्त होना पाया जाता है।

सार्वभौम व्यवस्था में ही मानव अपनी जागृति (सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्नता) को समाधान, समृद्धि सम्पन्न परिवार सहज व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित होता है।

समाधान ज्ञान-विवेक-विज्ञान सहज गति है। यही जागृत मानव गति है - हर सोच विचार गति, कार्य संवाद गति व फल परिणाम गति, अखण्डता सम्पन्न गति।

मानव लक्ष्य संपन्नता से जीवन मूल्य प्रमाणित होना, जीवन मूल्य सहज प्रमाण रूप में सहज विधि से मानव लक्ष्य साक्षित फलित होता है।