मानवीय संविधान

by A Nagraj

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शिक्षा-संस्कार प्रक्रिया का आरंभ परिवार में ही होना स्वाभाविक है। जागृत मानव परंपरा का यह साक्ष्य है।

जागृत मानव परंपरा में हर परिवार में प्राप्त सन्तान के लिए जागृति सहज समीचीन रहती है। इसी विधि से जागृत मानव परंपरा प्रमाण वर्तमान होना सहज है।

जागृत परंपरा में ही उत्पादन-कार्य व्यवस्था सफल होता है। उत्पादन कार्य निपुणता, कुशलता, पाण्डित्य पूर्वक सर्व देश काल में आकाँक्षा द्वय के अर्थ में सफल होता है।

व्यवस्था-कार्य मूल्यांकन पूर्वक विनिमय संपन्न होता है।

ज्ञान, विवेक, विज्ञान संपन्न मानसिकता ही मानव लक्ष्य के अर्थ में मूल्यांकन होना स्वाभाविक रहता है। यह दश सोपानीय व्यवस्था विधि से गठित होना ही सामाजिक अखण्डता व्यवस्था सहज सार्वभौमता सहज प्रमाण है।

उत्पादन गुणवत्ता की पहचान शरीर पोषण-संरक्षण के अर्थ में अखण्ड सार्वभौमता सहज समाज गति के अर्थ में है।

7.3 (2) गुणवत्ता की पहचान

आहार की गुणवत्ता शरीर पोषण के रूप में

आवास की गुणवत्ता शरीर संरक्षण बनाये रखने में आवश्यक शीत-वात-उष्मा से कम-अधिक

का बचाव रूप में पहचान।

अलंकार शरीर शोभा को व्यवस्था में भागीदारी के अर्थ में पहचान बनाये रखने के रूप

में, शरीर सहज उष्मा को बनाये रखने में पहचान।

संज्ञानीयता पूर्वक संवेदनाएं नियंत्रित रहने का प्रमाण।

औषधि रोग पीड़ा के निवारण करने और बचाव, स्वास्थ्य को संतुलित बनाये रखने के रूप में पहचान।

दूरसंचार यथा दूरश्रवण, दूरदर्शन व दूरगमन और गतिशील यंत्रों का व्यवस्था व उत्पादन गति संतुलन के अर्थ में उपयोग, सदुपयोग है।