अध्यात्मवाद
by A Nagraj
मान्याताओं पर आधारित शिष्टता और आदर्शता देखने को मिल रहा है। यह विविध प्रकार से समुदायगत आस्थाओं के रूप में प्रवाहित होते हुए अभी तक अन्तर्विरोध और परस्पर समुदायों का विरोध समाप्त नहीं हो पाया। ये सभी परम्पराएँ उपदेश व आश्वासनों के बलबूते पर सम्मानित होना देखा जाता है। यह आशा-विचार बन्धन का ही स्वरूप है क्योंकि इन सभी समुदायों में सम्मानित विविध वाङ्गमय जो आज इस दशक में प्रस्तुत हैं, सर्वसम्मत समझदारी का निश्चयन नहीं कर पाते हैं। इसका कारण मानव का अध्ययन स्पष्ट नहीं हो पाया, अस्तित्व सहज सत्य सहअस्तित्व के रूप में स्पष्ट नहीं हो पाया।
आशा, विचार, इच्छा बन्धन को जागृति क्रम में व्यक्त होना अति आवश्यक रहा है क्योंकि इनके परिणाम में पीड़ाओं का आंकलन होना आवश्यक रहा है। इच्छा बन्धन की अभिव्यक्ति इच्छा पूर्ति के लिये धरती का शोषण, वन का शोषण, मानव का शोषण के रूप में देखने को मिलता है। यही वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी तंत्र का चमत्कार रहा। सभी सामुदायिक शासन अपने विवशता सहित अपने सामरिक सामर्थ्य को बुलंद करने के लिये देशवासियों को एकता अखण्डता का नारा सहित किये जाने वाले सत्ता संघर्ष भी इच्छा बंधन क्रम में एक बुलंद प्रयास और आवाज सहित प्राप्तियाँ होना देखा जाता है। इसी क्रम में यह भी देखा गया विरक्ति, असंग्रहता का दुहाई देने वाले सभी धर्मगद्दी इच्छा बन्धन के तहत अनेक सुविधाओं को इकट्ठा करता हुआ शोषणपूर्वक अथवा परिश्रम के बलबूते पर विविध प्रकार से अपने-अपने वैभव को (इच्छा बन्धन रूपी वैभवों को) व्यक्त करता हुआ देखा गया है। इसमें जो असफल रहते हैं वे सब कुण्ठित और चिन्तित रहता हुआ देखने को मिलता है। इसी प्रकार शिक्षा गद्दी भी इच्छा बन्धन के अनुरूप ही शैक्षणिक कार्य, वाङ्गमय अभीप्साओं को स्थापित करने के कार्य में व्यस्त रहता हुआ देखने को मिला। इस दशक तक स्थापित, संचालित तथा कार्यरत शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत व्यक्ति, प्राध्यापक, आचार्य वेतनभोगी होते हुए देखा जाता है। यह इच्छा बंधन का ही प्रमाण है और हर विद्यार्थी को नौकरी (वेतनभोगी) अथवा व्यापारी (शोषणकर्ता) के रूप में स्थापित करता है और इन दोनों क्रियाकलाप का लक्ष्य सुविधा, संग्रह, भोग ही है। यह इच्छा बन्धन का इस दसवीं दशक तक मानव परंपरा का समीक्षा है।