अध्यात्मवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 87

प्रवृत्ति, कार्य, तरीके तैयार होते गये। बंधन के व्यवहार रूप को इसी स्वरूप में देखा गया है। हर कार्य और तरीके के मूल में मानसिकता (आशा, विचार, इच्छा) का होना सुस्पष्ट है। जीवन ही मानसिकता के रूप में कार्य करना स्पष्ट है।

1. वस्तु के रूप में कौन सी चीज है जो बन्धन में पड़ा रहता है?

भ्रमित जीवन ही बन्धन के रूप में अपने को चार विषय पाँच संवेदनाओं को राजी करने के रूप में व्यक्त करता है। यही मानव परंपरा में मानसिकता का अर्थ है। जीवन में मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि और आत्मा अक्षय बलों के रूप में कार्यरत रहना और आशा, विचार, इच्छा, ऋतम्भरा और प्रमाण अक्षय शक्ति के रूप में कार्यरत रहना स्पष्ट हो चुकी है।

2.वस्तुके रूप में कौन सी चीज है जो बाँधकर रखती है?

उत्तर में यही मिलता है कि कोई वस्तु अस्तित्व में ऐसी नहीं है जो जीवन को बंधन में डालती हो। अस्तित्व स्वयं ही सहअस्तित्व होने के कारण नित्य व्यवस्था सहज प्रेरणा सूत्र है। जीवन जागृति के अनन्तर व्यवस्था में जीने की संभावना हर मानव के लिए समीचीन है।

इससे स्पष्ट है जीवन लक्ष्य रूपी जागृति और जागृति पूर्णता के पहले जो स्थिति-गतियाँ आशा, विचार और इच्छा-प्रिय, हित, लाभ, भय, प्रलोभन और आस्था और इनके संयोग योग से जितने भी क्रियाकलाप होते हैं ये भ्रम रूप होना देखा गया है। यही बन्धन है। अनुभव रूपी सहअस्तित्व में प्रमाण - मानव चेतना, देव चेतना, दिव्य चेतना क्रम है।

3. वस्तु के रूप में कौन सी चीज है जो मुक्ति दिला दे?

जीवन जागृति अर्थात् तीनों विकसित चेतना पूर्वक स्वयं में, स्वयं से, स्वयं के लिये भ्रम मुक्ति पा लेता है। जीवन अस्तित्व सहज वस्तु होना सुस्पष्ट है क्योंकि मूल में सम्पूर्ण परमाणु वस्तु है जीवन भी एक गठनपूर्ण परमाणु होना स्पष्ट है। मुक्ति दिला सकने वाला जीवन से भिन्न कोई वस्तु नहीं है। ‘जीवन’ के लिए प्रेरक वस्तु सहअस्तित्व में स्वयं जागृत जीवन ही है क्योंकि सहअस्तित्व स्थिर है, जागृति निश्चित है।