अध्यात्मवाद
by A Nagraj
अध्याय - 2
अनुभवात्मक अध्यात्मवाद : एक परिचय
सम्पूर्ण आदर्शवाद यथा अध्यात्मवाद, अधिदैवीवाद, अधिभौतिकवाद रहस्यमयता और कल्पनाशीलता के योगफल में वाङ्गमय रचित होता ही रहा। इन वाङ्गमयों का मूल आशय श्रेय के लिए आस्थावादी प्रवृत्ति में मानव मानस को परिवर्तित करना ही रहा। क्योंकि भय किसी को स्वीकृत रहता नहीं, प्रलोभन कल्पना के अनुरूप वस्तुओं को उपलब्ध करना संभव नहीं रहा। इसी आधार पर शरीर यात्रा के अनन्तर मोक्ष और स्वर्ग मिलने के आश्वासनों को आदर्शवादी विचार द्वारा विविध प्रकार से प्रस्तुत किया गया। यह स्वयं भी विविध समुदाय और उसकी अस्मिता का आधार बना। यह भी समुदायात्मक अस्मिता होने के आधार पर युद्ध से मुक्त नहीं हो पाया।
आस्थावादी मानसिकता से प्रेरित उक्त वाङ्गमय रहस्य से ही सम्पूर्ण आरंभ होना, रहस्य में सम्पूर्ण समा जाने की कल्पनामय विधि को प्रस्तुत किये। ये सब रहस्यमूलक, रहस्यमयी ईश्वर, अध्यात्म, देवताओं के आधार पर सृष्टि, स्थिति लय और स्वर्ग और मोक्षदाता के रूप में प्रतिपादित तत्कालीन रूप में एक आवश्यकता रही। उसी के अनुसार सम्माननीय लोग प्रस्तुत करते रहे अथवा प्रस्तुति के आधार पर सम्मानित हुए। इस दशक तक में और परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई। भौतिकवादी विधि से मानव धरती को ही घायल करने के परिणाम स्वरूप धरती अपने शक्ल को जैसा बदलता गया भोग-मानसिकता के आधार पर जनसंख्या समस्या, पर्यावरण समस्या, आर्थिक और राजनैतिक समस्या इसी के साथ व्यापार और नौकरी की समस्या घर-घर, घाट-घाट, व्यक्ति-व्यक्ति में पीड़ा के रूप में देखने को मिली। ये दोनों (आदर्शवाद और भौतिकवाद) विचार मूलत: रहस्यमय ही है। इसके आधार पर ही यह सब समस्यात्मक कार्यक्रम को सुख या समाधान का स्त्रोत घोषित करता हुआ भ्रमित मानव परंपरा में से के लिए “अनुभवात्मक अध्यात्मवाद” को प्रस्तुत करना आवश्यक समझा गया।