अध्यात्मवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 47

हैं इसका परीक्षण स्वयं ही हर मानव, हर काल में, हर देश में किया जाना समीचीन है। इन क्रियाकलापों के निरीक्षण से पता लगता है कि जीवन्त मानव में आस्वादन का अनुभव भास; न्याय, धर्म, सत्यरूपी नित्य वस्तु का भास होना, हर व्यक्ति अपने से निश्चय कर सकता है। चिन्तन में ही न्याय, धर्म, सत्य का आभास होना और प्रतीति होना प्रमाणित होता है।

साक्षात्कार अपने में प्रयोजनों का निश्चयन सहित तृप्ति के लिये स्रोत रूप में अध्ययन विधि से पहचान लेता है। फलस्वरूप बोधपूर्वक अनुभव में सार्थकता सहित न्याय, धर्म, सत्य सहज स्वीकृति ही संस्कार और अनुभव बोध रूप में जीवन में अविभाज्य क्रिया रूपी बुद्धि में स्थापित हो जाता है। यही अध्ययन पूर्वक होने वाली अद्भुत उपलब्धि है। न्याय सहज साक्षात्कार सहअस्तित्व सहज संबंधों का साक्षात्कार सहित मूल्यों का साक्षात्कार होना पाया जाता है। यही मुख्य बिन्दु है। सहअस्तित्व सहज संबंधों को पहचानने में भ्रम रह जाता है यही बन्धन का प्रमाण है। यही जीवन को शरीर समझने का घटना है।

बन्धन को जीवन क्रियाकलाप में जाँचा जाना एक आवश्यकता है। बन्धन का स्रोत भ्रमित जीवन क्रिया से ही समीचीन रहता है। यह प्रिय, हित, लाभ दृष्टियों के रूप में आहारादि विषय-प्रवृत्तियों व दीनता, हीनता, क्रूरतावादी मानसिकता सहित प्रकाशित होती है। ऐसे क्रियाकलाप पर्यन्त जीवन भ्रमित रहना स्पष्ट होता है। जीवन अपने को भ्रमित स्वीकारना बनता नहीं, निर्भ्रम होने की चाहत जीवन में बना ही रहता है। यही भ्रम-मुक्ति का सूत्र बनता है। अतएव भ्रमवादी जितने भी क्रियाकलापों को फैलाए रहते हैं उसकी निरर्थकता का आंकलन होता है, सार्थकता के लिये प्रयासोदय होता है। यही जागृति क्रम में होने वाली सहअस्तित्व सहज वैभवशाली कार्य है।

मानव चैतन्य प्रकृति के ज्ञानावस्था सहज अस्तित्व और परंपरा है। ज्ञानावस्था स्वयं इसी बात को ध्वनित करता है। जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान सम्पन्नता ही ज्ञानावस्था की ध्वनि का अर्थ है और सार्थकता है। यह भी देखने को मिलता है कि हर मानव निर्भ्रम और जागृत होना चाहता है। एकता-अखण्डता जागृति सहज अभिव्यक्ति है। भ्रमवश ही विखण्डता, अनेकता में