अध्यात्मवाद
by A Nagraj
उत्पादन सुलभता अर्थात् परिवार में जितने भी परिवार मानव रहते हैं उन सबकी आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य होना परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था क्रम में सहज और सुलभ है। इस विधि से हर परिवार समृद्ध होने सहज समीचीनता सुलभ रहता ही है। इसी के साथ श्रम मूल्य के आधार पर विनिमय प्रणाली सर्वसुलभ होता ही है। इस विधि से लाभ-हानि मुक्त विनिमय सम्पन्न होना सहज है। फलस्वरूप लाभ से होने वाली अहमता (अहंकार) और हानि से होने वाली पीड़ा से मुक्त होना स्वाभाविक रहता ही है। समाधान, समृद्धि, शांति और सुख का सूत्र होना और न्याय सुलभता के साथ ही वर्तमान में विश्वास होना देखा गया है। बीसवीं शताब्दी के दसवें दशक तक यह प्रणाली मानव कुल में प्रभावी नहीं हुई है। इस स्थिति में भी यह अनुभव किया गया है स्वायत्त विधि से किया गया उत्पादन कार्य से समृद्धि का और संबंध, मूल्य, मूल्यांकन, उभय तृप्ति विधि से न्याय का प्रमाण हमें सुलभ हो चुका है। अब रहा विनिमय प्रणाली अभी तक प्रचलित लाभोन्मादी के अर्न्तगत ही हम लेन-देन जैसा उत्पादन और विनिमय मुद्रा के आधार पर करते हुए भी समृद्धि का अनुभव किया। इसलिये और कहा जा सकता है कि लाभ-हानि मुक्त विनिमय प्रणाली प्रत्येक परिवार में, से, के लिये शांति कारक सूत्र होना देखा गया।
स्वास्थ्य-संयम जागृति विधि से अर्थात् अनुभव विधि से स्वायत्त होना सहज है। संबंध-मूल्य-मूल्यांकन-उभयतृप्तिकारी मानसिकता स्वयं का प्रमाण है और स्वास्थ्य समाधान, सहअस्तित्व, वर्तमान में विश्वास, परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन-कार्य, न्याय-सुरक्षा में भागीदारी उसकी निरंतरता को बनाये रखने योग्य शरीर को संतुलित किये रहना स्वायत्तता के रूप में हर व्यक्ति में प्रमाणित होना समीचीन है। जीवन जागृति को मानव परंपरा में प्रमाणित करने के लिये शरीर की आवश्यकता और इसका उपयोग, सदुपयोग और प्रयोजनों के संबंध में हर व्यक्ति जागृत रहना आवश्यक होना है क्योंकि अनुभव की महिमा जागृति ही है। इसी सत्यतावश मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कारपूर्वक ही अथवा सुलभता से ही स्वायत्तता अपने आप संस्कारित होना पाया जाता है। स्वायत्त मानव ही परिवार मानव होना, परिवार मानव ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था का धारक-वाहक होना, अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था ही मानव में, से, के लिये परम सौभाग्य स्थिति, गति