अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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इस समीक्षा को यहाँ इसीलिये प्रस्तुत किये हैं कि हर मानव सत्य, समाधान, व्यवस्था, न्याय, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व को प्रमाणित करना चाहते हैं। हर मानव जन्म से ही सत्य वक्ता होता है इसलिए सत्य बोध होने की आवश्यकता है। भौतिकवादी और आदर्शवादी विधि से सत्यबोध होना मानव जाति के लिए प्रतीक्षित है। इसलिए सर्वतोमुखी समाधान और न्यायबोध होना अभी तक प्रतीक्षित है, अर्थात् 20वीं शताब्दी के दसवें दशक तक प्रतीक्षित है। विक्रम शताब्दी के अनुसार 2052 आषाढ़ मास तक प्रतीक्षित है। इसी सर्वेक्षण, निरीक्षण और परीक्षण के आधार पर “अनुभवात्मक अध्यात्मवाद” की आवश्यकता को पहचाना गया।

रहस्यमय और सुन्दर कल्पना के आधार पर अर्थात् मनलुभावन विधि से वाङ्गमयों में मोक्ष और स्वर्ग की कल्पनाएँ प्रस्तुत की गई है। जहाँ तक मोक्ष की बात है अध्यात्म विधि से ऐसा बताया गया है कि जीवों के हृदय में आत्मा रहता है। वह आत्मा ब्रह्म में अथवा परमात्मा में विलय हो जाता है। इसके लिये ब्रह्म ज्ञान ही एकमात्र शरण स्थली बताया गया। कुछ प्रणेताओं का कहना है यह एकांत विधि से संभव है और कुछ प्रणेताओं का कहना है घोर तप से, कुछ प्रणेताओं का कहना है योगाभ्यास से, संघ के शरण में जाने से, और कुछ प्रणेताओं का कहना है योग और संयोग से, होता है। ये सब मोक्ष के संबंध में बताए गए उपायों के क्रम में इंगित कराया गया। इंगित कराने का तात्पर्य स्वीकारने योग्य तरीके से है। और भी कुछ प्रणेता लोगों का कहना है कि प्रलय काल में परिणाम मोक्ष के रूप में जीव-जगत, ब्रह्म में अथवा देवी, देवता में विलय हो जाता है। (‘वह’ का तात्पर्य ऊपर कहे गये अध्यात्म, ईश्वर, देवी, देवताएँ) सबका कल्याण करेगा तब तक ईश्वरीय नियमों के साथ-साथ जीना ही धर्म संविधान है। ऐसा बताया करते हैं।

जहाँ तक स्वर्ग की बात है इसे, इस धरती से भिन्न स्थली में संजोने का वाङ्गमयों में प्रयत्न किया। उन-उन लोक में कोई देवी-देवता का होना और उन्हीं के आधिपत्य में उनका सौन्दर्य और सुख रहने का विधि से बताया गया है। इन वाङ्गमयों में स्वर्ग को सर्वाधिक सम्मोहनात्मक और आकर्षक विधियों से सजा हुआ बताया गया है वहाँ पहुँचने के लिए जो ज्ञात स्थिति है वह पुण्य ही एक मात्र पूंजी बताई गई है। पुण्य को पाने के लिए स्वार्थी को परमार्थी होना आवश्यक