अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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प्रकार जीवन भोक्ता है, सुख भोग है, भोग्य वस्तु व्यवस्था है। शरीर सहित मानव समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज तथ्यों को भोगता है।

सिद्धी - चमत्कार

सिद्धी-चमत्कार के मुद्दे पर बहुत सारे वाङ्गमय और बहुत सारे लोगों का प्रयास अर्पित हुई। इसी के लिये योगाभ्यास, संयम, शक्तिपात, शक्ति जागरण, इन्द्रजाल, सम्मोहन जैसी प्रयोगों को किया जाना देखा गया है। इसके अलावा भी कितने भी प्रकार से सिद्धी-चमत्कार के लिये प्रयत्न किया जो वाङ्गमय रूप में भी नहीं पाया, ऐसा भी लोगों को देखा गया। ये सबका समीक्षा यही है अभी तक इस धरती पर सर्वशुभ के लिये उपकार, प्रमाण अथवा तर्कसंगत मार्ग जो अध्ययन विधि से बोध हो सके, ऐसा कुछ हो नहीं पाया। पुन: यह सब में से समाधि लक्षित (सम्पूर्ण विचारों का मौन स्थली) प्रवृत्ति कार्य के अतिरिक्त सभी का सभी यश कीर्ति सुविधा संग्रह के लिये किया गया प्रयासों के रूप में परिणितियाँ देखने को मिली। जहाँ तक समाधि के लिये इशारा है यह घोर परिश्रम के अनन्तर होने वाली स्थली के रूप में देखा गया। इस स्थिति में सर्वसुख का कोई भी तरीका उपजता नहीं। इसलिये इसे स्वान्त: सुख कहा गया। यह सही होना देखा गया है परन्तु अस्तित्व में सिद्धी और चमत्कार के रूप कोई चीज नहीं है। जो कुछ है क्रमबद्ध है, नियमित है, संतुलित है और व्यवस्थित है। मानव कुल अभी तक व्यवस्था को ही पहचानने के क्रम में भयादि चारों सीढ़ियों को पार किया है।

सर्वशुभ समझदारी से ही है।

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