व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
सभा, ग्राम परिवार सभा और विश्व परिवार सभा में भागीदारी को निर्वाह करने के रूप में प्रमाणित होता है। यही परिवार मूलक स्वराज्य गति का स्वरूप है।
जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान सहज अध्ययन, न्याय, धर्म, सत्य प्रमाणित करने योग्य क्षमता, पात्रता को स्थापित करता है। अस्तित्व दर्शन स्वयं विज्ञान का सम्पूर्ण आधार है। अस्तित्व में ही समग्र व्यवस्था सूत्र और कार्य देखने को मिलता है। यही अस्तित्व दर्शन का जीवन जागृति क्रम में होने वाला उपकार है। विज्ञान का काल, क्रिया, निर्णयों की अविभाज्यता और सार्थकता की दिशावाही होना पाया जाता है। घटनाओं के अवधि के साथ काल को एक इकाई के रूप में स्वीकारने की बात मानव की एक आवश्यकता है। जैसे सूर्योदय से पुर्नसूर्योदय तक एक घटना है। यह घटना निरंतर है। निरंतर घटित होने वाला घटना नाम देने के फलस्वरूप उस घटना से घटना तक निश्चित दूरी धरती तय किया रहता है। इसे हम मानव ने एक दिन नाम दिया। अब इस एक दिन को भाग-विभाग विधि से 60 घड़ी, 24 घंटा आदि नाम से विखंडन किया। मूलतः एक दिन को धरती की गति से पहचानी गई थी, खंड-विखंडन विधि से छोटे से छोटे खंड में हम पहुँच जाते हैं और पहुँच गये हैं। फलस्वरूप वर्तमान की अवधि शून्य सी होती गई। धरती की क्रिया यथावत् अनुस्यूत विधि से आवर्तित हो ही रही है। इससे पता लगता है मानव के कल्पनाशीलता क्रम से किया गया विखंडन यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता से भिन्न स्थिति में अथवा भिन्न स्थिति को स्वीकारने के लिये बाध्य करता गया। यह भ्रम, भ्रमित आदमी को और भ्रमित होने के लिये सहायक हो गया। इसका सार तथ्य विखण्डन विधि से किसी तथ्य को