भौतिकवाद

by A Nagraj

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1. संतुलन :- प्राकृतिक संपदा को ऋतु संतुलन के अर्थ में संरक्षित करना व करने में विश्वास; असंतुलन की स्थिति में, संतुलित बनाने में विश्वास। प्राकृतिक संपदा को उसकी अभिवृद्घि के अनुपात में संतुलन को ध्यान में रखते हुए उपयोग, सदुपयोग करने में विश्वास।

2. संरक्षण :- धरती, जलवायु, वन, खनिज को संरक्षित करने में विश्वास।

3. मूल्यांकन :- प्राकृतिक ऐश्वर्य को उपयोगिता के आधार पर मूल्यांकन करने में विश्वास।

उक्त तीनों नियमों (बौद्घिक, सामाजिक, प्राकृतिक नियम) में इंगित व्यावहारिक प्रमाणों के आधार पर मानव, मानवीय समाज रचना में अर्थात् अखण्ड समाज रचना कार्य में सफल होता है।

इस धरती पर भौतिक क्रियाकलाप, रासायनिक क्रियाकलापों के लिए; रासायनिक क्रियाकलाप, भौतिक क्रियाकलापों के लिए पूरक है, यह स्पष्ट है। उदात्तीकरण सिद्घांत का प्रमाण वर्तमान में ही देखने को मिलता है कि विभिन्न दो प्रजाति के दो भौतिक ध्रुव जैसे एक जलने वाला - एक जलाने वाला यौगिक विधि से पानी में इस धरती पर अम्ल में, क्षार में एक से अधिक भौतिक तत्व मिलकर तरंगयात होते हैं। इनका संगीत विधि से वर्तमान रहना देखने को मिलता हैं। यही उदात्तीकरण का प्रमाण हैं। ऐसा रासायनिक वैभव क्रम में अनेक प्रकार के रस वैभव ठोस, तरल और विरल रूप में भी फैला दिखता है। जैसे, पानी ठोस रूप में बर्फ, तरल रूप में पानी दिखता ही है और वाष्प रूप में अर्थात् विरल रूप में भाप रहता है। इसी प्रकार से संपूर्ण रस और मिश्रित रस होना भी पाया जाता है। अस्तित्व में यह उदात्तीक्रम अपने आप में आनुपातिक होता हैं। इसका तात्पर्य यह है कि, इस धरती पर सभी रसायन द्रव्य का होना, प्रत्येक प्रजाति का रसायन द्रव्य कितने अनुपात में तैयार होना है, इस पूरक विधि क्रम में स्पष्ट हुआ। पूरक विधि की मूल वस्तु भौतिक वस्तु ही हैं। भौतिक वस्तुओं का मूल रूप परमाणु ही है।

अस्तित्व में संपूर्ण रचनाएँ चाहे कोई धरती संपूर्ण रचनाओं की रचना से समृद्घ हो या असमृद्घ हों, यही देखने को मिलता है कि भौतिक-रासायनिक रचना क्रम में ही धरती अपने-अपने वातावरण सहित व्यक्त होते दिखाई पड़ती हैं। इन सबमें पूरकता विधि से सभी प्रजाति के परमाणु तैयार हो जाते हैं। भौतिक रचना की मूल समृद्घि विभिन्न