भौतिकवाद

by A Nagraj

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प्रजाति के परमाणु हैं। इनके तैयार हो जाने से परमाणुओं की प्रजातियाँ परमाणु में निहित संख्यात्मक अंशों के आधार पर स्पष्ट होती है, और वर्तमान में प्रमाणित है। जैसे- इस धरती में जितने भी प्रकार के परमाणु परंपरा के रूप में स्थापित हो चुके है, वे सब परस्परता में नैसिर्गक है। ऐसा होने के फलस्वरुप विभिन्न प्रजाति के परमाणु अणु की स्थिति में, अणु रचित पिण्डों की स्थिति में भी परस्पर प्रभावित करने व रहने की प्रक्रिया अनुस्यूत रूप में निष्पन्न होते ही रहता है।

विभिन्न परमाणु और अणुओं का परस्परता में प्रतिबिम्बित रहना तथा प्रभावों से प्रभावित होना प्रमाणित है। ये सभी प्रकार के प्रभाव उष्मा और गति के रूप में प्रमाणित हो जाते है, क्योंकि यह धरती स्वयं उष्मा और गति के रूप में ही स्पष्ट है। इस धरती ने अपने में जो वातावरण बनाया है अर्थात् इस धरती की सहज भौतिक-रासायनिक वस्तुएँ, विरल रूप में भी इसी धरती के सभी ओर फैली दिखाई पड़ती है। इस फैले हुए व्यवस्था क्रम से यह तथ्य उजागर होता है कि ब्रह्माण्डीय अथवा अनन्त सौरव्यूह की उष्मा, प्रसारण किरण-विकिरण सहज संयोग में, यह धरती भी प्रमाणित है। इस धरती के वातावरण ने अपने में सक्षमता को स्थापित किया है। इस धरती के वातावरण से प्रवेशित होकर, इस धरती तक अर्थात् ठोस भाग तक पहुँचने तक उष्मा किरण-विकिरण को यह धरती उपयोग विधि स्वरुप दे देती है। जैसे- यह धरती उष्मा को क्रम से किरणों और रश्मि क्रम में, पूरकता विधि से, अपने में पच जाने की स्थिति को बनाये रखती है, ताकि इस धरती का स्वास्थ्य सदा बना रह सके। इस प्रकार धरती का “संरक्षण वलय” ही इस धरती का वातावरण है। यही इस धरती का प्रभाव क्षेत्र भी है। प्रत्येक एक अपने वातावरण सहित संपूर्ण है। संपूर्णता का तात्पर्य, पूर्णता के अर्थ में भागीदारी है। अस्तित्व में परमाणु में गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता और आचरणपूर्णता ही संपूर्णता का प्रयोजन है। यही मूल सिद्घांत पूरकता को निरंतर प्रमाणित करता है। ऐसा पूरकता क्रम प्रवर्तन सहअस्तित्व सहज प्रभाव विधि से प्रकाशित है।

सहअस्तित्व संपूर्ण वस्तुओं, अनंत वस्तुओं की परस्परता में संपन्न होने वाले क्रियाकलापों का वैभव है इसका मूल रूप सत्ता में संपृक्त भौतिक-रासायनिक और चैतन्य रूपी जीवन प्रकृति की संयुक्त अभिव्यक्ति हैं। इन अभिव्यक्तियों का संयुक्त रूप, व्यापक सत्ता में अनंत प्रकृति का वर्तमान होना रहना है, जो स्पष्ट होता है। इसी