भौतिकवाद

by A Nagraj

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मध्यस्थ क्रिया के अनुरुप में ही प्रत्येक इकाई में स्वभाव गति का होना पाया जाता है। परिणामत: उसमें अग्रिम विकास की संभावना और विकास क्रम में भागीदारी सुलभ हो जाता है।

प्रत्येक परमाणु में रूप, गुण, स्वभाव और धर्म वर्तने के कारण ही उनमें ऊर्जा का परिचय होता है। ऊर्जा जब कार्य ऊर्जा के रूप में होता है तभी बलों का परिचय हो पाता है। ऐसी स्थिति के लिए एक से अधिक इकाईयों की परस्परता अनिवार्य सिद्घ होती हैं। परमाणु अपनी स्थिति में क्रियारत होते हुए मिलता है। परमाणु में निहित बल का परिचय उसकी अपनी ही स्थिति में उसी के अन्तर्गत होने वाली क्रिया की ही अभिव्यक्ति है। प्रत्येक इकाई किसी का वातावरण और प्रत्येक इकाई के लिए अन्य का वातावरण नित्यभावी होने की सत्यता को ध्यान रखते हुए परस्पर बलों का परिचय पाने की व्यवस्था है। इसी क्रम में विकास की व्यवस्था एवं विकासक्रम में भागीदारी है। गठनपूर्णता पर्यन्त परमाणु में मात्रात्मक परिवर्तन के साथ ही अर्थात् अंशों की संख्या में परिवर्तन होने के साथ ही उनमें गुण परिवर्तन होते हुए देखा जाता है।

इस प्रकार मात्रा की गणना मूलत: परमाणु में आंकलित होना सिद्घ हुआ और अणु तथा अणुरचित मात्राएँ इन्हीं परमाणु के आधार पर होने वाली घटना होने के कारण परमाणु मूल मात्रा होना एवं रहने को समझ लेने मात्र से संपूर्ण पिण्डों का मात्रा के रूप में समझने का सूत्र अपने आप में निकल जाता है। परमाणु से रचित पिण्डों में होने वाले चारों आयामों का प्रकाशन इस प्रकार होना पाया जाता है:-

1. आकार, आयतन, घन के अर्थ में रुप ।

2. सम, विषम, मध्यस्थ के अर्थ में गुण (शक्तियाँ) ।

3. रचना, रचना की परंपरा, विरचना के रूप में स्वभाव (मौलिकता) ।