भौतिकवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 42

गुण की पहचान सम, विषम, मध्यस्थ शक्तियों के रूप में, स्वभाव की पहचान शक्तियों के सद् व्यय के रूप में होती हैं। धर्म की पहचान अस्तित्व, पुष्टि, आशा और आनन्द के रूप में स्पष्ट होती है।

अस्तित्व स्थिति और इकाई के किसी आयाम को भुलावा देना स्वयं अज्ञान का ही द्योतक होगा। अज्ञान स्वयं समस्या और क्लेश का द्योतक होता है । प्रत्येक मानव जागृति को स्वीकारता है। जागृति परार्वतन व प्रत्यावर्तन का सफल स्वरुप है। अर्थात् समाधान एवं प्रामाणिकता का स्वरुप है । ऐसी सामरस्यता रूप और गुणों की सीमा में परिपूर्ण नहीं होती। इसीलिए मानव को प्रत्येक इकाई के रूप, गुण, स्वभाव, धर्म अविभाज्य रूप में जानने, मानने, पहचानने और निर्वाह करने की आवश्यकता है।

इसी क्रम में मनुष्य पहचानने और निर्वाह करने के क्रम को अस्तित्व में विकसित करता आया है। अभी भी कई बिन्दु पहचानने, निर्वाह करने के लिए शेष है। फलत: अस्तित्व समग्र और अस्तित्व में समग्र विकास को पहचानने की आवश्यकता और स्थिति समीचीन हुई। इस प्रकार अस्तित्व समग्र और संपूर्ण इकाई नित्य शुभ और सफल है। शुभ और सफलता का तात्पर्य सर्वतोमुखी समाधान और प्रमाणिकता से है। यह अवसर अथवा ऐसा पावन अवसर प्रत्येक मानव में, से, के लिए समीचीन रहता है, क्योंकि जो था नहीं, वह होता नहीं।

जागृति क्रम में भी प्रत्येक मानव अपनी क्षमता योग्यता पात्रता को संप्रेषित एवं अभिव्यक्त करता है। यही प्रकाशमानता का भी तात्पर्य है। प्रत्येक इकाई प्रकाशमान है ही। प्रकाशमानता स्वयं प्रतिबिम्बन-अनुबिम्बन प्रक्रिया और प्रणाली होने के कारण यह प्रत्येक इकाई की स्थिति में वर्तमान रहता है। क्योंकि अस्तित्व में ऐसी कोई इकाई नहीं है जिसका वर्तमान न हो। मानव अस्तित्व में अविभाज्य इकाई होने के कारण इनका वर्तमान स्थिति सहज सिद्घ है। मानव में अपनी गरिमा, महिमा और वैभव को परंपरा का स्रोत बनाये रखने के क्रम में जागृति, उत्प्रेरणा समीचीन रहती ही है।

इसलिए जागृति पूर्वक ही मानव में सामाजिकता को पहचानने और मानवीयता को चरितार्थ रूप देने की अनिवार्यता सतत विद्यमान है। अस्तु, मानव सहअस्तित्व को प्रकाशित करना ही समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद और अनुभवात्मक अध्यात्मवाद सहज सूत्र और व्याख्या का स्वरुप है। इसका नित्य स्रोत