भौतिकवाद

by A Nagraj

Back to Books
Page 28

अध्याय - 4

अस्तित्व एवं अस्तित्व में परमाणु का विकास

अस्तित्व को अनादि काल से मानव स्पष्ट और प्रमाण रूप में समझने का प्रयास करता रहा है। इसी क्रम में अधिभौतिकवादी विचारों के अनुसार चेतना से पदार्थ की उत्पत्ति होती है ऐसा माना जाता है।

भौतिकवादी विचारों के अनुसार पदार्थ से चेतना निष्पन्न होती है।

ये दोनों विचारधारायें अपने-अपने समर्थन के लिए अनेकानेक तर्कों, अभ्यासों और प्रयोगों को प्रस्तावित करते रहे। अभी तक न तो किसी ने चेतना से पदार्थ को पैदा होते हुए देखा तथा न ही पदार्थ से चेतना पैदा होते हुए देखने को मिला। यही देखने को मिलता है कि चेतना व पदार्थ अविभाज्य वर्तमान है। इसके मूल रूप को देखने से पता चलता है कि सत्ता (चेतना) में संपृक्त प्रकृति (पदार्थ) ही अस्तित्व सर्वस्व है। यहाँ देखने का तात्पर्य समझने से है। सत्ता में संपृक्त प्रकृति अविभाज्य वर्तमान होने के कारण अस्तित्व स्वयं सहअस्तित्व के रूप में नित्य प्रकाशित है। इस तथ्य को हृदयंगम करने पर स्पष्ट हो जाता है कि चेतना और पदार्थ में नित्य सामरस्यता त्रिकालाबाध सत्य है।

सत्ता अरूप है, व्यापक है और सत्ता में प्रकृति रूप गुण स्वभाव धर्म संपन्न है और अविभाज्य है । ऐसा कोई स्थान ही नहीं जहाँ सत्ता न हो, इसलिए प्रकृति का सत्ता में होना स्वाभाविक है। सत्ता को साम्य ऊर्जा, शून्य, ज्ञान, चेतना, व्यापक, नित्य, ईश्वर और निरपेक्ष ऊर्जा के नाम से भी जाना जाता है। सत्ता में संपृक्त प्रकृति अनन्त इकाईयों के रूप में है। प्रत्येक इकाई सत्ता में संपृक्त होने के कारण सत्ता में घिरी हुई, डूबी हुई और भीगी हुई है।

सत्ता व्यापक रूपी किसी लंबाई चौड़ाई में सीमित नहीं है, इसका कोई मापदण्ड नहीं बन पाता, इसलिए सत्ता व्यापक है। प्रकृति रूप में जितनी भी इकाईयाँ है उन सबकी गणना नहीं हो पाती इसलिए वे अनंत है इस प्रकार अस्तित्व स्वयं व्यापक और अनन्त है।