भौतिकवाद
by A Nagraj
3. सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति में से जड़ प्रकृति, रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना में कार्यरत नित्य वर्तमान है। जो पदार्थावस्था और प्राणावस्था के रूप में गण्य है। पदार्थावस्था का स्वरुप और कार्य विभिन्न प्रकार के परमाणु और उनसे बनी रचनाऐं हैं। प्राणावस्था का प्रधान स्वरुप और कार्य प्राणकोषा और ऐसी कोषाओं से रचित रचनाऐं हैं। प्राणावस्था सभी अन्न, वनस्पतियों, जीव शरीरों और मानव शरीरों के रूप में दृष्टव्य है।
4. सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति में से चैतन्य प्रकृति गठनर्पूण परमाणु है। जिसका परिणाम के अमरत्व सहित, जीवन पद में संक्रमित रहना पाया जाता है।
वक्तव्य :-
1) अध्ययन करने की संपूर्ण वस्तु सहअस्तित्व ही है।
2) अध्ययन करने वाली वस्तु मानव है।
3) प्रत्येक मानव जड़-चैतन्य प्रकृति के संयुक्त साकार रूप में है। चैतन्य प्रकृति का नाम जीवन है। जड़ प्रकृति का नाम शरीर है।