भौतिकवाद
by A Nagraj
तत्काल इस बात की आवश्यकता है कि मानवीयतापूर्ण विधि से जीने की कला को हर समुदाय में हर मानव स्वीकार करे। फलस्वरुप हर समुदाय मानव चेतना में संक्रमित होने एवं हर नर-नारी मानव संचेतना पूर्वक प्रमाणित करने का समान अवसर और संभावना सुलभ हो सकें।
ऊपर स्पष्ट किये गये तथ्यों के आधार पर युद्घ, शोषण, लाभोन्मादी व्यापार, लाभ, शक्ति केन्द्रित शासन के आधार पर विकास का मूल्यांकन करना और उसको मान लेना दोनों गलत है और गलत ही रहेगा। यही मानव में देखने को मिला है, सही अर्थात् सहअस्तित्व सहज अर्थ में यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता जब तक ज्ञानी, अज्ञानी, विज्ञानी कहलाने वालों को समझ में नहीं आयेगा तब तक वह अपनी कल्पनाओं अथवा कल्पित निश्चयों उन्मादत्रय को सत्य मानते रहेगें। इस प्रकार मानव में ही सत्य से बहुत दूर रहते हुए भी अपनी भ्रमित कल्पनाओं को सत्य समझना पाया गया। यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता को सहअस्तित्व सहज वैभव के रूप में समझना और परीक्षण, निरीक्षण करना, सर्वेक्षण पूर्वक व्यवहार में सार्वभौमता को पहचानना संभव हुआ है। इस कार्य को मानव ही करता है। ऐसी स्थिति जब तक नहीं आएगी, तब तक मानव में जागृति का प्रमाण सिद्घ नहीं हो पाएगा।
अस्तु, इसका सहज उपाय है परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था को समझें और अपनावें। इसको जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण से सफल बनाएँ। जिससे ही यह धरती स्वर्ग होगी। मानव ही देवता होंगे। मानव ही देव कोटि में प्रमाणित होंगे। मानव धर्म अर्थात् सार्वभौम व्यवस्था, अखण्ड समाज सफल होगा। फलत: नित्य शुभ, समाधान, सुख, सार्थक सौंदर्य बोध सबको सुलभ होगा।
॥ नित्यम् यातु शुभोदयम् ॥