भौतिकवाद

by A Nagraj

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पूर्वक देवी-देवताओं के पद में संक्रमित हो जाता है। यह जीवन जागृति पूर्वक बोधगम्य होता है। फलत: ईश्वर, देवता और आत्मा संबंधी रहस्यों से पूर्णत: मुक्त हो जाता है। इसी के साथ अज्ञात नाम की कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं रह जाती है।

मानव धर्म सहज अखण्डता ही अखण्ड समाज और सार्वभौम व्यवस्था है। सार्वभौम व्यवस्था मानव परंपरा में स्थापित होना और उसकी निरंतरता होना नियति सहज है, इसलिए परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था क्रम में विश्व परिवार और विश्व व्यवस्था सहज रूप में ही मानव कुल को सुलभ होता है। इसे प्राप्त कर लेना ही मानव परंपरा की अक्षुण्णता, संप्रभुता, प्रभुसत्ता, मानवीयता सहज प्रबुद्घता है। इसे हम मानव जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान सहज मौलिकता के आधार पर प्राप्त कर सकते हैं। इससे मानव कुल को ग्रसित द्रोह, विद्रोह, शोषण और युद्घ संबंधी सभी विकार दूर हो जावेंगे। समुदाय चेतना से अखण्ड मानव समाज चेतना में प्रत्येक मानव को संक्रमित होना मानव परंपरा सहज प्रणाली से सहज सुलभ हो जाता है। यही मानव परंपरा में निरंतर समाधान, सुख, सौंदर्य सहज उत्सव हैं। इस विधि से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि समुदाय परंपरा में मतों के आधार पर (अर्थात् भीड़) मान्य हुआ है। जबकि अस्तित्व सहज रूप में मानव समाज होना सहज ही समझ में आता है।

मानव जाति एक है यह मूलत: मानव धर्म के आधार पर आधारित है। कर्म के आधार पर आधारित जातियाँ क्लेशों का पुलिंदा हो गई। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव धर्म के वैभव में ही मानव जाति की एकता, अखण्डता समझ में आती है। मानव जाति की समानता के आधारों को ऊपर विविध प्रकार से समझाया गया है।

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