भौतिकवाद
by A Nagraj
नित्य वर्तमान होना पाया जाता है। अस्तित्व ही मूलत: वैभव है। जागृति पूर्वक जीवन अपने वैभव को व्यक्त करता है। यही दृष्टा पद, समझदारी का प्रमाण है। अस्तित्व वर्तमान है अस्तित्व और समझदारी में एकरुपता ही मूलत: व्यवस्था का सूत्र और व्याख्या है।
(6) समझदारी न होने की स्थिति में समस्या का प्रकाशन है :-
अस्तित्व का सहअस्तित्व के रूप में होना ही सूत्र और चार अवस्थाओं में होना ही नियति सहज व्याख्या स्वरुप है। इस प्रकार अस्तित्व ही संपूर्ण वस्तु है, जागृत जीवन ही दृष्टा है तथा मनुष्य ही दृष्टा पद को प्रमाणित करने योग्य होता है।
मानव सहअस्तित्व में अनुभवपूर्वक दृष्टा पद प्रतिष्ठा के आधार पर ही व्यवस्था का प्रमाण है। मानव ही समझदारी पूर्वक हर कार्य, व्यवहार, विन्यास को, विचारों को, व्यवस्था के रूप में अभिव्यक्त कर पाता है। समझदारी के बिना कल्पनाशीलता, कर्म-स्वंतत्रता का प्रयोग अपने आप में सर्वाधिक समस्याओं को पैदा कर लेता है। यही मानव में भ्रमवश होने वाली समस्याओं का कारण है कल्पनाशीलता को विचारों में भी प्रयोग करता है। तब वांङ्गमय, साहित्य को भी प्रस्तुत करता है। इसी के आधार पर कला, साहित्य के नाम से भी कल्पनाएँ दौड़ पड़ती है।
(7) राज्य, धर्म का मूल रुप :-
मानव में कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता का संपूर्ण कर्माभ्यास, व्यवहार अभ्यास की परिणित समाधान चाहना है। इसी विधि से शोध प्रक्रिया सहज संभव हो जाती है। इस प्रकार मानव का समाधान की ओर अपेक्षित रहना सहज है। इसी आधार पर प्रत्येक मानव समाधान को वरता (शोध या अनुसंधान करता) है। इस ढंग से राज्य और धर्म का मूल रूप समझदारी व्यवस्था है। व्यवस्था की अभिव्यक्ति के रूप में सर्वतोमुखी समाधान है। समाज रूप में संबंधों, मूल्यों को पहचानना तथा मूल्यांकन करने की विधि से समाधानित होना पाया जाता है । यही मानव धर्म है। यह जागृति का प्रमाण है। जागृति स्वयं समाधान और उसकी निरंतरता है। जागृति का प्रयोजन अस्तित्व में प्रत्येक एक के प्रति जागृत होने से है। जागृति का तात्पर्य जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने से है। यह जीवन ज्ञान सहित सहअस्तित्व में अनुभव है। पदार्थावस्था के