भौतिकवाद

by A Nagraj

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है कि मानव अस्तित्व में अविभाज्य दृष्टा है। संबंधों के आधार पर ही अस्तित्व सहज व्यवस्था समझ में आता है। अस्तित्व सहज व्यवस्था सहअस्तित्व ही है। इसलिए प्रत्येक एक की व्यवस्था होते हुए, समग्र व्यवस्था में भागीदारी सूत्र से सूत्रित रहना पाया जाता है इसका प्रमाण है कि चारों अवस्थाएँ, उनमें परस्पर में पूरकता, उदात्तीकरण, विकास, जागृति सहज रूप में दिखाई पड़ता है। मानव ही इसमें जागृति का प्रमाण हैं। परमाणु में विकास का प्रमाण जीवन है। पूरकता का प्रमाण संपूर्ण प्राणावस्था है। उदात्तीकरण का प्रमाण संपूर्ण प्राणावस्था की रचना है तथा साथ ही जीव शरीर एवं ज्ञानावस्था (मनुष्य) शरीर की रचना है।

(4) मानव समझदारी से व्यवस्था में प्रमाणित होता है, जो अस्तित्व सहज ही होती है :-

अस्तित्व सहज व्यवस्था वर्तमान सहज प्रमाण के रूप में वैभव है। जब-जब मानव व्यवस्था का अनुभव करता है, तब-तब वर्तमान में विश्वास, भविष्य के प्रति आश्वासन होना पाया जाता है। भविष्य के प्रति आश्वस्त होने का तात्पर्य विधिवत् योजना और कार्य योजना होने से है। वर्तमान में विश्वास का तात्पर्य समझदारी सहित दायित्वों, कर्तव्यों का निर्वाह हैं। जिसे भले प्रकार से कर चुके हैं, कर रहे हैं और करने में निष्ठा है। समझदारी का स्वरुप जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान में, से, के लिए जागृति है। जागृति का तात्पर्य जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने से है। इस प्रकार जागृति ही वर्तमान है, वर्तमान ही जागृति का संपूर्ण रूप है।

(5) स्वयं को पहचानना जीवन ज्ञान एवं जागृति - “सहअस्तित्व में अनुभव ही जागृति सहज नित्य वर्तमान है” :-

यही मुख्य बिन्दु है। मानव सहज रूप में ही वर्तमान सहज जागृति क्रम में है । स्वयं को पहचानना ही जीवन ज्ञान है। जीवन ज्ञान का अनुभव मानव में, से, के लिए सहज है। जीवन ज्ञान ही वर्तमान में स्वयं के होने के रूप में स्पष्ट करता है। होना ही वर्तमान है। अस्तित्व का स्वरुप ही नित्य वर्तमान है। संपूर्ण होना (अस्तित्व) चार अवस्थाओं में स्पष्ट है। संपूर्ण होने के साथ ही मानव का होना भी अविभाज्य है। अस्तित्व में जीवन और सत्तामयता भी अविभाज्य है। जीवन जागृत होने के उपरान्त भी अस्तित्व में ही