जीवनविद्या एक परिचय
by A Nagraj
जीवन, जीवन को समझने वाला और जीवन अस्तित्व को समझने वाला तरीका भिन्न है। जहाँ तक भौतिक रासायनिक वस्तुएं है इनको हम प्रयोगपूर्वक उपयोगिता के आधार पर पहचान लेते हैं। उपयोगिता को हम सामान्य आंकाक्षा और महात्वाकांक्षा के रूप में पहचानते हैं। सामान्य आकांक्षा है आहार, आवास, अलंकार (साधन)। महात्वाकांक्षा है -दूरगमन, दूरश्रवण, दूरदर्शन। इनमें से अधिकांश भाग तो पहचान लिए गये हैं उत्पादन भी कर लिए हैं। इसको सर्वसुलभ करने का प्रयत्न भी व्यापार विधि से किए हैं। व्यापार विधि में लाभ की प्रतीक्षा रहती ही है।
जीवन का विश्लेषण क्रिया के आधार पर हम यह पहचान पाते हैं कि हमको किन-किन वस्तुओं की आवश्यकता है। फिर उन आवश्यकताओं को पहचान कर हम उत्पादन करते हैं और समृद्धि का अनुभव करते हैं। जैसे ही हम समृद्धि का अनुभव करते हैं वैसे ही हम व्यवस्था में जीना शुरू कर देते हैं इसलिए हमारे विद्यार्थियों को सर्वप्रथम स्वायत्त बनाने की जरूरत है और उसके बाद परिवार में प्रमाणित होने योग्य प्रवृत्ति और फिर समग्र व्यवस्था में जीने की आवश्यकता है। इन तीनों स्थितियों में प्रमाणित होना मानव का सौभाग्य है। ऐसा सौभाग्यशाली बनने के लिए मानव की स्वयंस्फूर्त आवश्यकता ही एकमात्र आधार है। यदि ऐसी आवश्यकता बनती है तो इस प्रस्ताव को मनोयोगपूर्वक, अध्ययन पूर्वक अपने को प्रमाणित करना सहज है।
तो हम समझने की कोशिश किए, समझदारी क्या है? समझने वाला कौन है समझदारी के लिए वस्तु क्या है? समझने वाला वस्तु ‘जीवन’ ही है। समझने के लिए वस्तु ‘अस्तित्व’ है, ‘जीवन’ है एवं ‘मानवीयतापूर्ण आचरण’ ही है। अस्तित्व को समझने के क्रम में अस्तित्व में विकास को समझना है। रासायनिक और भौतिक रचना, विरचना को समझना है। रासायनिक और भौतिक रचना, विरचना पदार्थावस्था और प्राणावस्था के रूप में अस्तित्व में विद्यमान है। ये सभी वस्तुएं एक स्वरूप में होकर दूसरे स्वरूप में परिवर्तित होते रहते हैं जैसे पेड़ पौधे कुछ काल पश्चात स्वयं सूखकर मिट्टी बन जाते हैं। इसी का नाम परिवर्तनशीलता है। यह परिवर्तन भौतिक रासायनिक पदार्थों में निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसी