जीवनविद्या एक परिचय

by A Nagraj

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समाधान से सुखी। समझदारी से सही कार्य-व्यवहार होता है। सही में सभी एक होते हैं गलती में अनेक। हमारी गलती से आप सम्मत/सहमत हो जाएं आपकी गलती से हम सम्मत/सहमत हो जाए ऐसा होता नहीं है। जो गलती है तो गलती है आपके लिए भी हमारे लिए भी। सही में हम एक ही हैं ये बात हमको समझ आ गयी।

स्वत्व समझदारी में, से, के लिए ही हमारा कल्याण प्रशस्त होता है। समझदारी से ही सुखी, समृद्ध होते हैं, समझदारी में वर्तमान में व्यवस्था के रूप में जीते हैं। समझदारी से ही परम्परा रूप में सहअस्तित्व को प्रमाणित करते हैं। सुख के चार चरण है :- समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में जीना। ये चार चीज प्रमाणित होता है तो हम सुखी हो जाते हैं। जब तक ये चारों चीज नहीं आती है तब तक हम समझदार परंपरा में, से, के लिए प्रयत्न करते रहते हैं। इस प्रयत्न के क्रम में ही हम तमाम जप-तप, पूजा-पाठ, योग-यज्ञ कर डाले हैं। बहुत सारी चीजें भी इकट्ठा किया। किन्तु सब लोग खुश नहीं हुए। सभी सुखी होने के लिए समझदार होना है। समझदारी सबमें पहुँचाया जा सकता है। समझदारी के लिए पहला चरण है अस्तित्व को समझना। अस्तित्व चार अवस्था में है। पहला पदार्थावस्था जिसमें मिट्टी, पाषाण, मणि, धातु आदि हैं ये सब अपने अपने आचरण में प्रमाणित हैं ही। दूसरी प्राणावस्था जिसमें सभी पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ, औषधियां हैं ये सब भी अपने आचरणों में स्वयं प्रमाणित है। तीसरा जीवावस्था जिसमें मानव को छोड़कर सभी जीव, पक्षी, आते हैं, ये सभी भी अपने त्व सहित व्यवस्था के रूप में प्रमाणित हैं ही। चौथा ज्ञानावस्था है जिसमें मानव ही है जिसका व्यवस्था होने में अभी प्रतीक्षा है। अब सोचिए सबसे विकसित अवस्था सबसे पीछे है। क्या मतलब है इसका? दुख नहीं होगा तो क्या होगा।

तो हमारा चरित्र भी विकसित के रूप में होने की आवश्यकता है। आचरण के रूप में हर वस्तु अपनी व्यवस्था को प्रमाणित करते हैं। मानव भी अपने आचरण के अनुसार प्रमाणित करेगा। ये एक सूत्र मिलता है। इस सूत्र को हम, आप, सबको जांचना ही है। जांचने जाते हैं तो अपने में कौन सा चीज समझने वाला है, उस चीज को पहले समझना। समझकर निर्वाह करने वाला क्या चीज है इसको