अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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अपने निश्चित आचरण को छोड़ देते हैं तथा तीसरे ही प्रकार के आचरण के लिए तैयार हो जाते हैं। यह समृद्ध पदार्थावस्था के उपरांत ही घटित हो पाता है। पदार्थावस्था अपने सम्पूर्ण समृद्धि को बनाए रखते हुए विभिन्न/सम्पूर्ण रचना वैभवों को स्पष्ट करता है इसका साक्ष्य इस धरती पर दृष्टव्य है। विभिन्न रचनाएँ अपने-अपने मौलिकता के आधार पर बीजानुषंगीय-वंशानुषंगीय विधियों को प्रमाणित करता हुआ देखने को मिलता है। यहाँ यह भी स्मरण रहना आवश्यक है कि मानव ही देखने जानने-मानने-समझने वाला है। देखने का अर्थ समझना ही है। समझने का स्वरूप और प्रमाण जानना-मानना-पहचानना-निर्वाह करना, इनमें नित्य समरसता को अनुभव करना, ऐसे सामरस्यता को सर्वतोमुखी दिशा, कोण, परिप्रेक्ष्य और आयाम में समाधान के रूप में अभिव्यक्त और संप्रेषित करना ही है। अर्थात् पदार्थावस्था-प्राणावस्था, रासायनिक-भौतिक स्वरूप है। पदार्थावस्था समृद्ध होकर ही रसायन द्रव्यों में परिवर्तित होना स्पष्ट हुआ। इसमें से उदात्तीकरण सिद्धांत से विकास क्रम में स्थित पदार्थावस्था की एक से अधिक इकाईयाँ अपने आचरण को अग्रिम विकास के अर्थ में तिलांजलि देकर तीसरे प्रकार के आचरण को वे सभी इकाईयाँ मिलकर अपनाना ही प्रधान तथ्य है। यहाँ भी सहअस्तित्व में आवर्तनशीलता प्रमाणित होता है।

सहअस्तित्व का तात्पर्य ही सभी प्रकटन साथ-साथ होने से है। साथ-साथ होने का तात्पर्य चिन्हित रूप में अलग-अलग आचरण प्रभाव, अविभक्त-विभक्त मानव पहचानने योग्य होने और विकास क्रम में अथवा विकास के रूप में स्पष्ट रहने से है। इस विधि से सम्पूर्ण भौतिक-रासायनिक वैभव विकासक्रम में गण्य होता है। साथ ही इनके योग-संयोग-वियोग विधियों से श्रेष्ठता क्रम में स्पष्ट हो जाती है। विकासक्रम में स्थित सभी भौतिक पदार्थ और रसायन द्रव्य, उनसे घटित घटनाएँ उदात्तीकरण के साथ-साथ सहअस्तित्व इन्हीं के आचरण में दृष्टव्य है। यथा परमाणु-अंश एक दूसरे के साथ निश्चित दूरी, निश्चित कार्य, निश्चित फलन के साथ-साथ परमाणु गठित होता है। इसके मूल में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में ऊर्जा-सम्पन्नता, बल-सम्पन्नता का स्वरूप स्पष्ट किया जा चुका है। इसी आधार पर परमाणु सहज क्रियाकलाप का मानव अपने भाषा में अपने ही दृष्टापद प्रतिष्ठा के अनुरूप व्यक्त करने पर जितने भी परमाणु अंश परमाणु में कार्यरत हैं, वे सब एक दूसरे को पहचानते हैं। प्रत्येक परमाणु गतिपथ और गति पथों सहित कार्यरत रहना, निर्वाह करने का द्योतक है। इस प्रकार