मानवीय संविधान

by A Nagraj

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मानवेत्तर अर्थात् जीव, वनस्पति, पदार्थ संसार के साथ नियम-नियंत्रण पूर्वक संतुलन और निरंतरता ही नित्य वैभव स्वरूप है।

अखण्ड समाज व सार्वभौम व्यवस्था सूत्रित व्याख्यायित रहना न्याय का स्वरूप है।

समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी व भागीदारी सहज परंपरा न्याय सहज स्वरूप है।

7.2 (6) आचरण में न्याय

मानवीयता पूर्ण आचरण

पुत्र-पुत्री का माता-पिता के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-

गौरव, कृतज्ञता, प्रेम, सरलता, सौम्यता, अनन्यता भावपूर्वक वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में

माता-पिता का पुत्र-पुत्री के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-

ममता, वात्सल्य, प्रेम, उदारता, सहजता, अनन्यता भावपूर्वक वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में

गुरु शिष्य के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-

प्रेम, वात्सल्य, ममता, अनन्यता, सहजता, उदारता भावपूर्वक प्रबोधन प्रक्रिया सहित वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में

शिष्य गुरु के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-

गौरव, कृतज्ञता, प्रेम, सरलता, सौजन्यता, अनन्यता भावपूर्वक जिज्ञासा सहित वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में

बहन-भाई, भाई-बहन के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-

सम्मान, गौरव, कृतज्ञता, प्रेम, सौहार्द्रता, सरलता, सौजन्यता, अनन्यता भावपूर्वक वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में

मित्र मित्र के साथ विश्वास निर्वाह निरंतरता :-

स्नेह, प्रेम, सम्मान, निष्ठा, अनन्यता, सौहार्द्रता भावपूर्वक वस्तु व सेवा अर्पण-समर्पण रूप में