मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • मानवत्व ही समानता व श्रेष्ठता सहज आधार बिन्दु है।
  • मानवत्व ही मानव सहज पहचान है।
  • मानवत्व शिक्षा संस्कार का सूत्र व्याख्या है।
  • मानवत्व मानव परंपरा, अखण्डता, सार्वभौमता, अक्षुण्णता सहज सूत्र व्याख्या है।
  • मानवत्व मानव परंपरा में जागृति सहज प्रमाण है।
  • मानवत्व मानव में, से, के लिए स्वयंस्फूर्त होने का स्रोत है।
  • मानवीय शिक्षा-संस्कार का प्रमाण मानवत्व है।
  • समझदारी पूर्वक किया गया व्यवहार कार्य व्यवस्था में ज्ञान, विवेक, विज्ञान का स्पष्ट होना ही मानवीयतापूर्ण परंपरा है।
  • मानवीयता पूर्ण आचरण में, से, के लिए ज्ञान, विवेक, विज्ञान प्रमाणित होता है।
  • जागृति के मूल में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व ज्ञान, सहअस्तित्व में ही जीवन ज्ञान और मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान सम्पन्नता है। यह मानवत्व है।
  • मानवत्व ही मानव परंपरा में, से, के लिए सर्वतोमुखी समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण है।
  • मानवत्व मानव में ही प्रमाणित होता है।
  • मानवत्व ही जागृत मानसिकता रूप में प्रमाणित मूल्यांकित होता है।
  • हर जागृत मानव मूल्यांकन विधि से एक दूसरे को पहचानता और निर्वाह करता है। यह मानवत्व है।
  • हर मानव में, से, के लिए जागृति सहज प्रमाण व मूल्यांकनाधिकार सहित स्वत्व स्वतंत्रता ही मौलिकता है।
  • मानव में, से, के लिए प्रमाणित व मूल्यांकित करना कराना मौलिक है।
  • हर मानव में, से, के लिए जागृति सहज अधिकार मौलिक है।
  • अधिकार ही अनुभव, व्यवहार व प्रयोग प्रमाण है।

मानवीयता पूर्ण विधि से प्रमाणित होना अधिकार है।