मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • प्रमाण रूप में अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद प्रस्तुत हो चुका है।
  • निरीक्षण परीक्षण सर्वेक्षण क्रियाकलापों को सम्पन्न करने वाला मानव ही है।
  • मानव ही सम्पूर्ण आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य, देशकाल का दृष्टा, ज्ञाता, कर्ता, भोक्ता के रूप में प्रमाणित होना ही जागृति है।
  • मानव बहुआयामी होने का तात्पर्य समस्त विधाओं में कल्पना, विचार, ज्ञान, विज्ञान, विवेकपूर्वक अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन करता है, करना चाहता है।

यह जागृति में, से, के लिए सहज प्रमाण है।

  • जागृत मानव में ही बहुआयामी समाधान प्रवृत्ति, दृष्टि, कार्य, व्यवहार होना पाया जाता है।
  • जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने की प्रवृत्ति जागृत मानव में दृष्टव्य है।
  • हर मानव शरीर यात्रा के आरंभ समय से ही कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता का प्रकटन रहता ही है।
  • कल्पनाशीलता ही सोच, विचार, अध्ययन करने का स्रोत है। कर्म स्वतंत्रता ही प्रयोग, कार्य, व्यवहार करने का आधार है। इसी क्रम में शोध अनुसंधान परंपरा है।
  • मानव सहज अध्ययन पूर्वक मानवीय संविधान शिक्षा व्यवस्था व उत्पादन कार्य-व्यवहार विधि स्पष्ट होता है। यह मानवत्व है।
  • मानवत्व हर जागृत नर-नारी सहज आचरण में, से, के लिए प्रमाणित होता है।
  • मानवत्व हर नर-नारी का स्वत्व है।
  • मानवत्व हर नर-नारी में समानता का सूत्र है।
  • मानवत्व अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था का सूत्र है।
  • मानवत्व सर्व मानव का स्वत्व है।
  • मानवत्व सर्व मानव का अधिकार है।
  • मानवत्व ही मूल्यांकन का आधार है।

मानवत्व ही परस्परता में संबंध व सम्मान सहज सूत्र है।