मानवीय संविधान

by A Nagraj

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हस्तक्षेप से मुक्त रहेगी। न्याय प्रक्रिया का स्वरूप सुधार-प्रणाली पर आधारित रहेगा ताकि ग्राम-न्यायालय में सम्पूर्ण प्रक्रिया मानवीय संचेतनावादी व्यवहार पद्धति पर आधारित होगी। चूंकि प्रत्येक मानव को, मानवीयता पूर्ण पद्धति व प्रणाली व नीति पूर्वक जीने का अधिकार समान है। इसके अनुसार गाँव में मानवीयता पूर्ण आचरण पद्धति, मानवीयता पूर्ण व्यवहार प्रणाली व अर्थ (तन, मन, धन) की सुरक्षात्मक व सदुपयोगात्मक नीति रहेगी। जो भी व्यक्ति इस व्यवस्था की निरंतरता बनाए रखने में असमर्थ रहेगा, वह सुधरने के लिए प्रवृत्त होगा। मानव अज्ञान, अत्याशा और अभाव वश ही गलती, अपराध तथा भय-प्रलोभनवश तन, मन, धन रूपी अर्थ का अपव्यय करता है।

यह व्यवहार मानवीयता और सामाजिकता व व्यवस्था सहज गति के लिए सहायक नहीं है। न्याय सुरक्षा समिति, न्याय सुलभता और सुरक्षा कार्य में निष्ठान्वित तथा प्रतिज्ञाबद्ध रहेगी।

न्याय सुरक्षा समिति मानवीय आचार संहिता के अनुसार न्याय प्रदान करेगी। मानवीय आचार संहिता के अनुसार न्याय व्यवस्था के चार प्रधान आयाम है :- (1) आचरण में न्याय (2) व्यवहार में न्याय (3) उत्पादन में न्याय (4) विनिमय में न्याय।

  • आचरण में न्याय :-

स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष और दया पूर्ण कार्य का वर्तमान और उसका मूल्यांकन आचरण में न्याय का स्वरूप है। स्वधन का तात्पर्य श्रम नियोजन का प्रतिफल, कला तकनीकी, विद्वत्ता विशेष प्रदर्शन, प्रकाशन किए जाने के फलस्वरूप प्राप्त पुरस्कार और उत्सवों के आधार पर किया गया आदान-प्रदान के रूप में प्राप्त पारितोष रूप में प्राप्त धन या वस्तुएँ से हैं।

स्वनारी, स्वपुरूष :-

विवाह पूर्वक स्थापित दाम्पत्य संबंध जिसका पंजीयन ग्राम मोहल्ला सभा में होगा।

दया पूर्ण कार्य :-

  • मानव चेतना पूर्वक मूल्यों की पहचान और उसका निर्वाह।

संबंधों की पहचान और निर्वाह क्रम में तन, मन, धन रूपी अर्थ का अर्पण समर्पण।