मानवीय संविधान
by A Nagraj
Page 140
- प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलित होने का प्रमाण रहेगा।
शिक्षा संस्कार व्यवस्था के मूल उद्देश्य:-
प्रत्येक मानव को -
- व्यवहार में सामाजिक
- व्यवसाय में स्वावलंबी
- स्वयं के प्रति विश्वासी
- श्रेष्ठता के प्रति सम्मान करने में पारंगत, जिससे व्यक्तित्व व प्रतिभा का संतुलन प्रमाणित हो।
शिक्षा संस्कार व्यवस्था का स्वरूप :-
- प्रत्येक मानव को व्यवहार शिक्षा में पारंगत बनाना।
- प्रत्येक को व्यवसाय शिक्षा में पारंगत कर एक से अधिक व्यवसायों में स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर निपुण व कुशल बनाना।
- प्रत्येक को साक्षर, समझदार बनाना।
- ग्राम सभा पाठशाला की व्यवस्था स्थानीय आवश्यकतानुसार करेगी।
- आयु वर्ग के आधार पर शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था होगी।
शिक्षा की व्यवस्था ग्रामवासियों के लिए निम्नानुसार की जावेगी-
- बाल शिक्षा।
- बालक जो स्कूल छोड़ दिए हैं व दस वर्ष से अधिक आयु के हैं, ऐसे बच्चों को 30 वर्ष तक के अन्य अशिक्षित व्यक्तियों के साथ व्यवहार शिक्षा व व्यवसाय शिक्षा में पारंगत बनाने की व्यवस्था रहेगी।
- 30 वर्ष की आयु से अधिक स्त्री पुरुषों को साक्षर-समझदार बनाकर व्यवहार शिक्षा में पारंगत बनाने की व्यवस्था होगी।
स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर आवश्यकता होने पर स्त्री पुरुषों के लिए अलग शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था होगी।