मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलित होने का प्रमाण रहेगा।

शिक्षा संस्कार व्यवस्था के मूल उद्देश्य:-

प्रत्येक मानव को -

  • व्यवहार में सामाजिक
  • व्यवसाय में स्वावलंबी
  • स्वयं के प्रति विश्वासी
  • श्रेष्ठता के प्रति सम्मान करने में पारंगत, जिससे व्यक्तित्व व प्रतिभा का संतुलन प्रमाणित हो।

शिक्षा संस्कार व्यवस्था का स्वरूप :-

  • प्रत्येक मानव को व्यवहार शिक्षा में पारंगत बनाना।
  • प्रत्येक को व्यवसाय शिक्षा में पारंगत कर एक से अधिक व्यवसायों में स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर निपुण व कुशल बनाना।
  • प्रत्येक को साक्षर, समझदार बनाना।
  • ग्राम सभा पाठशाला की व्यवस्था स्थानीय आवश्यकतानुसार करेगी।
  • आयु वर्ग के आधार पर शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था होगी।

शिक्षा की व्यवस्था ग्रामवासियों के लिए निम्नानुसार की जावेगी-

  • बाल शिक्षा।
  • बालक जो स्कूल छोड़ दिए हैं व दस वर्ष से अधिक आयु के हैं, ऐसे बच्चों को 30 वर्ष तक के अन्य अशिक्षित व्यक्तियों के साथ व्यवहार शिक्षा व व्यवसाय शिक्षा में पारंगत बनाने की व्यवस्था रहेगी।
  • 30 वर्ष की आयु से अधिक स्त्री पुरुषों को साक्षर-समझदार बनाकर व्यवहार शिक्षा में पारंगत बनाने की व्यवस्था होगी।

स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर आवश्यकता होने पर स्त्री पुरुषों के लिए अलग शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था होगी।