गोल |
gol |
69 |
- धरती की रचना जैसी है, वैसा ही सभी धरती की रचना स्वाभाविक है क्योंकि धरतियाँ अपने में घूर्णन गति परिवेशीय गति में निरंतर क्रियाशील है, शून्याकर्षण की यही महिमा है।
|
View
|
गोष्ठी |
goshthi |
69 |
- उद्देश्य समझने के लिए किया गया संयुक्त प्रयास।
|
View
|
गौण |
gaun |
69 |
- अपेक्षाकृत महत्वहीन । लघु मूल्य।
|
View
|
गौरव |
gaurav |
69 |
- जागृति और उसकी प्रमाण परम्परा।
- निर्विरोध पूर्वक अंगीकार किये गये अनुकरण।
|
View
|
गौरवमय |
gauravmay |
69 |
- जागृति परम्परा के रूप में प्रमाण होना।
|
View
|
गंध |
gandh |
69 |
|
View
|
गृहस्थ |
grihastha |
69 |
- परिवार समेत पहचान सम्पन्न घर में निवास करने वाला, आवास को अपनत्व के साथ अपने सुरक्षा के रूप में पहचाना हुआ।
|
View
|
घटना |
ghatna |
69 |
- भौतिक-रासायनिक घटना, जीवन जागृति क्रम जागृति घटना।
- योग, संयोग, वियोग-प्रयोग प्रक्रिया से उत्पन्न परिस्थितियाँ।
|
View
|
घन |
ghan |
69 |
- किसी वस्तु का भार (बोझ) सहित लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई में गणना करना, किसी वस्तु का भार।
|
View
|
घनीभूत |
ghanibhoot |
70 |
- ठोस रूप में परिवर्तित होना रहना।
|
View
|
घर्षण |
gharshan |
70 |
- परस्परता में एक अच्छी दूरी से कम होने के उपरांत परस्पर अस्तित्व प्रदर्शन के रूप में एक दूसरे के बीच होने वाली संघर्षात्मक क्रिया।
|
View
|
घायल |
ghayal |
70 |
- शरीर व्यवस्था में अवरोध पैदा करना।
|
View
|
घुटन |
ghutan |
70 |
- समाधान सहज अपेक्षा के विपरीत समस्याओं से पीड़ित होना।
|
View
|
घिरा |
ghira |
70 |
- पानी में पत्थर डूब कर पानी से घिरा रहता है।
- व्यापक वस्तु में जड़-चैतन्य वस्तु घिरा रहता है।
- मानव भ्रमवश समस्याओं से घिरा रहता है।
- मानव ही समाधान पूर्वक स्वतंत्र गतिशील है।
|
View
|
घोषणा |
ghoshna |
70 |
- अन्तिम निष्कर्षों को प्रकट करना, सत्यापन करना।
|
View
|
घृणा |
ghrina |
70 |
- भ्रमवश अवमूल्यन क्रिया का प्रकाशन।
|
View
|
चक्रवात |
chakravat |
70 |
- धरती सहज रूप में घूर्णन गति व वर्तुलात्मक गतिरत है इन दोनों के योगफल में आकस्मिक रूप में घटित होने वाली वायु प्रवाह।
|
View
|
चमत्कार |
chamatkar |
70 |
- एक व्यक्ति जिस विधि से कुछ भी प्रदर्शित करता है वह दूसरे के समझ में न आने की स्थिति तक।
|
View
|
चयन |
chayan |
70 |
- चुनने का क्रियाकलाप।
- चरितार्थता में सहायक आवश्यक अथवा अनिवार्य तत्व, वस्तु विषय का ग्रहण।
- मन को जो प्रिय हो, उसके चुनाव की प्रक्रिया की चयन संज्ञा है। मन में आस्वादन अपेक्षा पूर्वक चयन होता है।
|
View
|
चयनवादी |
chayanvadi |
70 |
- चुनाव करने की प्रवृत्ति सहित।
|
View
|