अध्यात्मवाद
by A Nagraj
नाम से इंगित वस्तु अस्तित्व में है ही। यह (मिट्टी) स्वयं में केवल नाम न होते हुए भी वस्तु के रूप में वर्तमान है। इसी प्रकार हर नाम से इंगित वस्तु अस्तित्व में होना वर्तमान है। व्यापक वस्तु में ही सम्पूर्ण एक-एक भीगा-डूबा और घिरा हुआ होने के आधार पर व्यापक वस्तु को सत्ता नाम दिया है। पहले से भी कुछ नाम है - वह है अध्यात्म। व्यापक वस्तु को पूर्व में सार्थक रूप में समझना-समझाना बन नहीं पाया था। अभी इस व्यापक वस्तु को हर मानव समझ पाना संभव हो गया है। एक-एक के रूप में जो वस्तुएँ है, इन्हें परस्परता में देखने के पहले ही व्यापक वस्तु दिखता ही है। इसी व्यापक वस्तु को हम अध्यात्म नाम भी दिये हैं। इसी व्यापक वस्तु में सम्पूर्ण वस्तु डूबा-भीगा-घिरा दिखाई पड़ने के आधार पर ‘अनुभवात्मक अध्यात्मवाद’ इस ग्रंथ का नाम रखा गया है। वाद सदा ही मानव परंपरा में एक-दूसरे के बीच संप्रेषणा कार्य ही है। दूसरे विधि से सम्भाषण ही है। मानव परंपरा में संभाषण एक अनिवार्य प्रक्रिया है। हर तथ्यों के प्रति जागृति और उसका संप्रेषणा मानव परंपरा में होना आवश्यक है ही। मानव में, से, के लिये समीचीन सभी आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य संबंधी सम्भाषण-संप्रेषणा एक अनिवार्य घटना है। यह घटना स्वाभाविक रूप में मानवापेक्षा और जीवनापेक्षा को सार्थक बनाए रखने के क्रम में सर्वाभिलाषित है ही। इसी अभीप्सावश “अनुभवात्मक अध्यात्मवाद” की अभिव्यक्ति है।
सुदूर विगत से अनुभव के अभाववश कई प्रकार से विचारों को सजाते हुए भी मानवपेक्षा-जीवनापेक्षा का सफलता या सफल बिन्दु नहीं मिल पाया था। अभी “अनुभवात्मक अध्यात्मवाद”, “व्यवहारात्मक जनवाद” और “समाधानात्मक भौतिकवाद” के रूप में सहअस्तित्व विधि से उभय-अपेक्षा सर्वसुलभ होने की विधि से चर्चा-वार्तालाप, संभाषण, प्रबोधन, अध्ययन करना संभव हुआ है। अध्ययनपूर्वक मानव में समझदारी परिपूर्ण होना देखा गया। इसीलिये सम्पूर्ण वस्तु समझदारी के लिये जो आवश्यकता है उन सबको परंपरा में सर्वसुलभ करने की आवश्यकता है ही। इन्हीं आशय के साथ जीवन सहज जागृति, जागृति सहज अभिव्यक्ति, संप्रेषणा क्रम में यह एक वाङ्गमय मानव के सम्मुख प्रस्तुत है।