अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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मानव परंपरा में शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, उत्पादन कार्य, विनियम कोष, स्वास्थ्य-संयम, व्यवस्था व व्यवस्था में भागीदारी सहज मुद्दों पर जागृत सहज प्रमाण होना, जानने-मानने-पहचानने में निरीक्षण समर्थ होना और निर्वाह करने में निष्णात रहना ही प्रामाणिकता है। निष्णातता का तात्पर्य निरीक्षण पूर्वक हर कार्य व्यवहारों को पूर्णरूपेण पूर्णता के अर्थ में प्रतिपादित, प्रकाशित और प्रमाणित करना ही है। यह मानव सहज अपेक्षा और आवश्यकता होना देखा गया। इसकी दूसरी विधियों में मानव कायिक, वाचिक, मानसिक, कृत, कारित और अनुमोदित विधाओं में जागृतिपूर्ण कार्यकलापों को प्रमाणित करना ही है। यह सर्वमानव स्वीकृत है। स्वीकृति को सर्वत्र देखने के लिए जागृत होना चाहते हैं या भ्रमित रहना चाहते हैं, इसके उत्तर में हर व्यक्ति जागृति का ही पक्ष लेते हैं। जागृति का सुस्पष्ट स्वरूप अस्तित्व में जागृत होना ही है। अस्तित्व में जागृत होने का गतिक्रम स्वरूप अपने आप में सहअस्तित्व में ही निहित है। जिसको हम सहअस्तित्व के रूप में पहचानते हैं। सहअस्तित्व में ही परमाणु में विकासक्रम और विकास, विकसित परमाणु ही जीवन पद में होना, जीवन ही जीवनी क्रम, जागृतिक्रम, जागृति और जागृतिपूर्ण विधियों से विविध परंपराओं में मुक्त रहने, अखण्डता सार्वभौम व्यवस्था सहज रूप में वर्तमानित रहने तथा गठनशील परमाणुओं में भौतिक-रासायनिक क्रियाकलापों के फलन में रचना-विरचनाएँ वर्तमान है, इन्हीं सहअस्तित्व सहज गति को जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करना ही जागृति और जागृति का प्रमाण है। इससे यह विदित होता है ऊपर कहे सभी क्रमों में हर मानव, सर्वाधिक मानव प्रमाणित होना ही जागृत मानव परंपरा का स्वरूप होना सुस्पष्ट हो गई। यही सर्वसुख विधि को सार्थक बनाता है।

मानव में जागृत परंपरा स्थापित होने प्रमाणित होने और उसकी निरंतरता को बनाए रखने के लिए सर्वसुखवादी विधि और व्यवस्था ही एक मात्र शरण है। यह पहले से ही स्पष्ट हो चुकी है जागृति ही विधि है, इसे प्रमाणित करना ही व्यवस्था है। यही व्यवस्था मानवीयता पूर्ण शिक्षा-संस्कार सुलभता व्यवस्था अपने स्वरूप में न्याय-सुरक्षा सुलभता, विनियम-कार्य सुलभता, उत्पादन-कार्य सुलभता, स्वास्थ्य-संयम कार्य सुलभता रूप में होना देखा गया है। यह सर्वसुलभ होना समीचीन है, आवश्यक और संभव है। मानव परंपरा में जागृति का प्रमाण मानवीयतापूर्ण शिक्षा