अध्यात्मवाद
by A Nagraj
दृष्टा पद का सर्वप्रथम उपलब्धि शरीर का दृष्टा होना ही है। शरीर का दृष्टा होने के आधार पर ही ऊपर इंगित किये गये तथ्य स्पष्ट हुआ है। उक्त तथ्यों को हृदयंगम करने से जागृति की संभावना समीचीन होती ही है। इसी आशय से यह अभिव्यक्ति है। दृष्टा होने का सतत फलन यही है हर स्थिति-गति, योग-संयोग, फल-परिणाम परिपाक और प्रवृत्तियों का मूल्यांकन होना सहज हो जाता है। जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान सम्पन्न मानव मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान का मूल्यांकन, अस्तित्व सहज प्रयोजन का मूल्यांकन करता है। यह महिमा अस्तित्व कैसा है स्पष्टतया समझने के उपरान्त सफल हो जाता है और सफल होना देखा गया है।
अस्तित्व सम्पूर्ण सत्ता में संपृक्त सहअस्तित्व होने के रूप में अपने वैभव को चारों अवस्था में प्रकाशित किया है। यही वर्तमान का मतलब है। जीवन का स्वरूप, स्वीकृति और उसका अनुभव प्रतिष्ठा ही जीवन ज्ञान का तात्पर्य है। अस्तित्व सहज स्वरूप जैसा है इसका स्वीकृति और उसमें अनुभव स्वयं में से स्फूर्त प्रवृत्त सहअस्तित्व दर्शन का तात्पर्य है। जीवन ज्ञान सहअस्तित्व सहज के प्रकाश में ही अस्तित्व दर्शन सबको सुलभ होता है। इसलिये जीवन ज्ञान पर बल दिया जाता है। विद्या का तात्पर्य ही ज्ञान है। यहाँ इस तथ्य का भी स्मरण रहना आवश्यक है - जिन बातों को विद्या अथवा ज्ञान आदिकाल से कहते आ रहे हैं वह कल्पना क्षेत्र में ही सीमित रह गया। इसका साक्ष्य यही है जिसको ज्ञान, आत्मा, देवता कहते हुए सम्पूर्ण साधना, उपासना, अर्चना का आधार मान लिया गया है। वह सब मन, बुद्धि का गोचर नहीं है। मन, बुद्धि को जड़ क्रिया मानते हुए ज्ञान चेतना इनके पहुँच से बाहर है ऐसे ही उद्बोधन करते आये। इसके बावजूद बहुत सारे किताब इन्हीं मुद्दे अथवा नाम पर लिखा गया है। उल्लेखनीय तथ्य यही है कि जीवन ज्ञान - जीवन में, से, के लिये ही होता है। सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान सहअस्तित्व में, से, के लिये ही होता है। इन दोनों विधाओं का दृष्टा जीवन ही होना पाया जाता है फलस्वरूप मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान विधि से दृष्टा पद की महिमा स्पष्ट है। इस विधि से जीवन ज्ञान अर्थात् देखने समझने वाला, दिखने वाला भी जीवन सहित होना स्पष्ट हुआ। देखने वाला जीवन, दिखने वाला सहअस्तित्व यह अस्तित्व दर्शन के