अध्यात्मवाद
by A Nagraj
का विश्लेषण न हो पाने से अभी भी इसी दिशा में अनुसंधान और उसके प्रोत्साहन को जारी रखा गया है। जबकि शरीर को जीवन ही जीवन्त बनाए रखते हुए समृद्धिपूर्ण मेधस सम्पन्न मानव शरीर के माध्यम से मानव परंपरा में जीवन ही अपने जागृति को प्रमाणित करने के क्रम में सदा-सदा प्रयास करते ही रहा। परम्पराएँ भ्रमित रहने के कारण मानव सहज जागृति की इच्छाएँ हर शरीर यात्रा में दिशा विहीनता और मार्ग विहीन होने का कुण्ठा सदा बाधा करता ही रहा। इस क्रम में ही जागृति के लिये आवश्यकीय अनुसंधान और उसे परम्परा में स्थापित करना आवश्यक हो गया।
जीवन का स्वरूप, कार्य और शरीर के साथ कार्य विधि इस मुद्दे पर विश्लेषण निष्कर्ष निकालने के विधि को प्रस्तुत किया जा चुका है। इसमें मूलतः विकास के मंजिल में जीवन ही जागृति क्रम में कल्पनाशीलता, विश्लेषण कार्य, चित्रण, चिन्तन सहज मौलिकता, बोध सम्पदा और अनुभव सहज वैभव को हर व्यक्ति अनुभव करने की आवश्यकता बनती है। जीवन में उक्त सभी क्रियाएँ कम से कम कल्पनाशीलता उससे अधिक विश्लेषण से मानव परंपराएँ व्यंजित होता देखा गया है। ऐसे विश्लेषणों को अधिकतर चित्रित करने का कोशिश किया गया है। जबकि चिन्तन से ही मानव अपेक्षा और जीवन अपेक्षा स्पष्ट हुआ। बोध और अनुभव पूर्णतया जीवनापेक्षा और मानवापेक्षा को सार्थक बनाने के कार्यक्रम से सम्पन्न हो जाता है। इसे सार्थक बनाने के क्रम में ही सार्वभौम व्यवस्था और अखण्ड समाज रचना विधि-यह दोनों सुस्पष्ट हो जाता है। इसलिये मानव परंपरा में अनुभवमूलक कार्य परंपरा स्थापित होना सहज है क्योंकि मानवापेक्षा की कसौटी में ही जीवन अपेक्षा की सफलता प्रमाणित होना है। इस प्रकार अनुभवमूलक ज्ञान, विज्ञान, विवेक, विचार, विश्लेषण व्यवहार में प्रमाणित होने की पद्धति प्रणालियाँ परम्परा में सार्थक होना, चरितार्थ होना समीचीन है।
अनुभवमूलक ज्ञान को जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान के रूप में विज्ञान को अस्तित्व सहज सहअस्तित्व का विश्लेषण विधि से, विचारों को अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिन्तन के रूप में, विवेक को यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता के आधार पर विवेचना करने के आधार पर जान लिया, मान