अध्यात्मवाद
by A Nagraj
कराना इस विधि से सहज हुआ है कि स्थिति सत्य के रूप में अस्तित्व बोध होना जो स्वयं में, सत्ता में संपृक्त प्रकृति मानव भी है। सहअस्तित्व के रूप में जड़-चैतन्य प्रकृति वर्तमान सहज रूप में बोध होना अध्ययन प्रक्रिया सहज विधि से होता है। अस्तित्व में पाये जाने वाले प्रकृति सहज वस्तुओं के परस्परता में दिशा और कोणों को पहचाना जाता है। जैसा दो वस्तुओं को कहीं भी स्थापित कर देखें इनमें परस्परता साभिमुख विधि से वर्तमान रहता है। साभिमुखता का तात्पर्य एक-दूसरे के सम्मुख रहने से है। ऐसी सभी सम्मुखताएँ अभ्युदय के अर्थ में ही होना पाया जाता है। इसका मूल सूत्र प्रत्येक एक अपने त्व सहित व्यवस्था के रूप में होना ही है, ऐसे प्रत्येक सम्मुखताएँ सविपरीत दिशा-बोध कराता है।
प्रत्येक एक अपने में अनन्त कोण सम्पन्न रहता ही है। किसी एक में एक बिन्दु के साथ सभी ओर कोणों को बनाते जाएँ, कितने भी बनाए और भी बनाये ही जा सकते हैं। ऐसी स्थिति समीचीन रहती है। इस प्रकार इकाई में अनन्त कोण और परस्परता में दिशा स्पष्ट होना पाया जाता है क्योंकि सभी ओर से हर वस्तु दिखता है।
आदर्शवादी विचार के अनुसार मोक्ष का स्वरूप
ईश्वर को रहस्यमय और सर्वशक्तिमान सृष्टि, स्थिति और लय कार्यों पर/में अधिकार रखने वाला माना गया है। यह मूलभूत मान्यता विविध प्रकार से दिखने वाली विविध धार्मिक मूल ग्रन्थों में प्रतिपादित किया गया। इनमें से अधिकांश रहस्यमयी ईश्वर केन्द्रित विचारों के अनुसार जीव और जगत का उत्पत्ति होना, स्थिति होना, लय होना माना गया। उनमें से कुछ विचार और दर्शन इस बात को भी स्वीकारता है, प्रतिपादन करता है कि जीवों के हृदय में ईश्वर जैसे ही वस्तु निहित या समाहित रहता है। जिसको आत्मा कहा गया है। कुछ लोग जीव का ही होना मानते हैं, कुछ लोग जीवों में आत्मा भी मानते हैं। मूल ग्रंथ में इन दोनों को न मानने वालों को शुद्धतः शरीरवादी कहते हैं। इसीलिये शरीरवादी भी अपने ढंग से धर्म विचार रखते हैं क्योंकि शरीर को ईश्वर बनाता है ऐसी उनकी मान्यता है। धरती, जल, खनिज सब ईश्वर से ही बना हुआ वस्तुएँ हैं। ईश्वर की इच्छा जब तक