भौतिकवाद

by A Nagraj

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4. प्रत्येक चैतन्य इकाई अर्थात् “जीवन” भार बंधन व अणु बंधन से मुक्त रहता है।

5. प्रत्येक जीवन, जागृत होने के क्रम में आशा बंधन, विचार बंधन, इच्छा बंधन से पीड़ित रहता है। ऐसा पीड़ित होना ही भ्रम है। इसके विपरीत जागृति होना मानव में न्याय अर्थात् संबधों का पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन क्रियाओं को परंपराओं में प्रमाणित करना जागृति है।

6. सर्वतोमुखी समाधान अर्थात् स्वयं व्यवस्था होना एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी को निर्वाह करने का कार्यकलाप के रूप में प्रमाणित करना जागृति है।

7. मानव का अस्तित्व में अनुभूत होने के प्रमाणों को प्रमाणित करना और स्वानुशासन रूप में जीने की कला को प्रमाणित करना परम जागृति हैं। इस प्रकार मानव परंपरा जागृति में, से, के लिए है- यह स्पष्ट है।

मानव में जीवन सहज रूप में ही नैसर्गिकता व वातावरण संबंधी वस्तुओं के प्रति जागृत होने की बाध्यता बना ही रहा। इस आशय को ज्ञात करने की इच्छा को व्यक्त किया है। बन्धन मुक्त इच्छा विधि से ही यह प्रमाणित होना संभव है, क्योंकि मानव को वातावरण और नैसर्गिकता समान रूप से प्राप्त है। जहाँ तक अस्तित्व सहज वातावरण है अर्थात् अस्तित्व नित्य वर्तमान के रूप में अक्षुण्ण है यह सबके लिए समान संप्राप्ति हैं। संप्राप्ति का अर्थ है पूर्णता के लिए प्राप्ति। जहाँ तक मानव कृत वातावरण का सवाल है इसे विभिन्न रुपों में विभिन्न देशों में देखा गया है। जिसको विविध रुपों में मानव इतिहास में स्पष्ट किया गया है। यह विविधताक्रम तब तक रहेगा जब तक अस्तित्व सहज संप्राप्ति के अनुरुप मानव पंरपरा जागृत न हो जाये। मानव परंपरा में जागृति का प्रयास न्याय, समाधान और प्रामाणिकता है। जिसका साक्ष्य मानव परंपरा में अखण्ड समाज व सार्वभौम व्यवस्था के रूप में व्यक्त होना ही है।

मानव जागृत होकर ही सुखी, समृद्घ तथा सुन्दरतम रूप में दिखाई पड़ता है । प्रत्येक मानव सुखी, समाधानित, समृद्घ और सुन्दर रहना ही चाहता है। परंपरा की अजागृति के कारण ही अथवा जागृति पूर्ण न होने के फलस्वरुप ही मानव कुंठा और अभाव से ग्रसित रहता है। यह मानव परंपरा सहज जागृति क्रम में पाये जाने वाले मानव की स्थिति हैं। मानव व्यक्ति के रूप में सदा शुभ चाहता है- यह प्रत्येक व्यक्ति में सर्वेक्षण पूर्वक समझ में आता है। व्यक्ति व्यक्ति में शुभ के रूप में जीने की कला और विचार